छत्तीसगढ़ी लोक नृत्य और छत्तीसगढ़ी लोक नाट्य
आज के इस पोस्ट में छत्तीसगढ़ी लोक नृत्य और छत्तीसगढ़ी लोक नाट्य के बारे में जानेंगे। छत्तीसगढ़ी लोक नृत्य से जुडी महत्वपूर्ण जानकारी आपको यहाँ दिया जा रहा हैं यदि आप छत्तीसगढ़ के किसी भी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो आपको लिए बहुत ही उपयोगी साबित होने वाला हैं | क्योकि छत्तीसगढ़ी लोक नृत्य छत्तीसगढ़ी लोक नाट्य से जुड़े कई सवाल परीक्षा में पूछे जाते हैं | अगर आप किसी भी देश या राज्य के बारे में जानने चाहते हैं तो उस देश की संस्कृति ,परम्परा ,रीति-रिवाज और रहन-सहन आपको उस देश या राज्य की लोक नृत्य ,लोक नाट्य में देखने को मिलेगी।
भारत गांवों का देश है और इन गावों में रहने वाले हमारे पूर्वजों द्वारा मनोरंजन और विभिन्न देवी देवताओं को खुश करने के लिए कई प्रकार के नृत्य किया जाता था ,ये नृत्य पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होता रहा।
Table of content :-
छत्तीसगढ़ी लोक नृत्य
- 1.सुआ नृत्य / गौरा-गौरी नृत्य :
- 2. पंथी नृत्यः
- 3. राउत नाचा:
छत्तीसगढ़ के लोक नाट्य
- 1.नाचा
- 2.रहस
- 3. गम्मत
- 4. भतरानाट
- 5. माओपाटा
- 6. दहिकांदो
- 7. खम्ब स्वांग
छत्तीसगढ़ी लोक नृत्य - लोक नृत्य
1. सुआ नृत्य / गौरा-गौरी नृत्य :
- देवार जनजाति की महिलाओं द्वारा वह नृत्य किया जाता है।
- यह नृत्य दीपावली के समय किया जाता है।
- इसमें केवल महिलाएं भाग लेती है।
- इसे गौरा नृत्य भी कहते है।
- इसमें मिट्टी के तोते बनाकर चारो ओर भारी बृजाकर नृत्य करते है।
- दोनो तोता शिव पार्वती का प्रतीकात्मक स्वरूप माना जाता है।
2. पंथी नृत्यः
- छग अंचल में सतनाम पंथ के लोगों द्वारा सामान्य अवसर पर किया जाता है।
- पंथी नृत्य गुरुघासीदास जी के जीवन चरित्र पर आधारित होता है।
- इसमें नर्तक सफेद वस्त्र धारण करती है।
- इसमें पुरुष एवं महिलाएं दोनो भाग लेती है। इसमें नृत्य में अंतिम समय में पिरामिड बनाते हैं।
प्रमुख नावाकार :- स्व देवदास बंजारे।
प्रमुख वाद्ययंत्र :- मंदिर व झाझ
3. राउत नाचा:
- राउत नाचा छ.ग. के बिलासपुर जिले में होता है।
- राउत नाचा कार्तिक माह में देवउठनी के दिन बिलासपुर के देवकी नंदन समूह में आयोजन होता
- बिलासपुर में राउत नाचा 1978 में प्रारंभ हुआ था
- वर्तमान 2016 में और तीसरे नंबर पर रावत नाचा महोत्सव का आयोजन हुआ
- राउत नाचा भगवान कृष्णा के पूजा के प्रतीक के रूप में किया जाता है
- इसमें केवल पुरुष ही भाग लेते हैं जो कि महिलाओं का भी रूप धारण करते हैं
- मादर त्योहार रावत लोग मनाते हैं
- राउत नाचा में दोहे गाए जाते हैं
- प्रमुख वाद्य यंत्र - गड़वा बाजा
छत्तीसगढ़ के लोक नाट्य - FOLK DRAMA OF CHHATTISGARH IN HINDI
छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोक नाट्य के बारे में तो आप जानते ही होंगे लेकिन उनके बारे मे पूर्ण परिचित होने के लिए यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी हो सकता है।
- छ.ग का सर्वाधिक प्रचलित लोकनाट्य, जो कि ग्रामीण अंचल में सर्व व्याप्त है।
- मराठा काल में यह प्रारंभ हुआ जो कि नाचा कहलाता था ।
- नाचा में तमाशा (मराठी) का प्रभाव दिखता है।
- यह मूलतः पुरुषों के द्वारा किया जाता है। परन्तु अब महिलाएं भी नाट्याभिनय करती है।
- नर्तकों की स्थानीय वेशभूषा होती हैं। तथा गांवों के किस सार्वजनिक स्थल पर मंचन होता है ।
- इसमें जोक्कड़ एवं पूरी की अहम भूमिका होती है।
- रहस छग राज्य का सांस्कृतिक परंपरा का प्रतीक है।
- पौराणिक चरित्रों की मानव आकार प्रतिमाएं बनाते हैं।
- यह राधा और कृष्ण की मनोहारि रामलीला की कथा का छ.ग. रूपांतरण है।
- यह बिलासपुर संभाग में सर्वाधिक प्रचलित है।
- रहस के रंगमंच को बेड़ा कहा जाता है।
- छ.ग. में बाबू रेवाराम रचित रहस की पाण्डुलिपिया प्रचलित है।
- इसमें विदुषक की भूमिका एक हास्य कलाकार के रूप में होती है।
- यह हास्य व्यंग्य की शैली में सामाजिक कुरीतियों व इसमें विदुषक (जोक्कड़) की भूमिका महत्वपूर्ण होती है
- नर्तक की भूमिका भी पुरुष ही करते हैं
- इसके दो रूप प्रचलित है पहली खड़े साज एवं दूसरी बैठे साज
- यह बस्तर के भतरा जनजाति द्वारा किया जाता है।
- भतरा नाट में केवल पुरूष ही भाग लेते है।
- इस पर उड़ीसा का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। अतः इसे उड़िया नाट्य भी कहते है।
- भतरानाट कथानक युद्ध प्रधान होता है। इसकी कथा वस्तु का स्त्रोत प्रायः पौराणिक प्रसंग होते हैं।
- यह मुड़िया जनजाति की शिकार पर आधारित नाट्य है।
- जिसमें जंगली भैंस हो या सांभर के शिकार का मंचत किया जाता है
- आयोजन- कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर
- यह कोरकू जनजाति में प्रचलित लोकनाट्य है।
- आयोजन क्वार नवरात्रि से देव प्रबोधिनी एकादशी तक
- गांव के मध्य मेघनाथ खम्ब की स्थापना कर इसके आस पास खम्ब स्वांग का मंचन किया जाता है।
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