ऋग्वैदिक काल की 46 महत्वपूर्ण बातें | Rigvedic period - 46 important things
इस आर्टिकल में ऋग्वैदिक काल की कुछ महत्वपूर्ण बातों के बारे में जानेंगे। भारत में प्राचीन सभ्यता का प्रभाव वर्तमान में भी देखने को मिलता है । यह ऋग्वैदिक काल का ही प्रभाव है कि भारत में वैदिक परम्पराओं में आस्था रखने वाले लोग ज्यादा हैं। हमें अपनी प्राचीन संस्कृति को जानने के लिए ऋग्वैदिक काल की घटनाओं का अध्ययन अवश्य करना चाहिए। विभिन्न प्रतिश्पर्धि परीक्षाओं में ऋग्वैदिक काल से जुड़े सवाल आते है । इस दृष्टि से भी ऋग्वैदिक काल की महत्वपूर्ण घटनाओं का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है।ऋग्वैदिक काल की 46 महत्वपूर्ण बातें जानने के लिए इस पोस्ट को पूरा जरुर पढ़ें।
ऋग्वैदिक काल (1500-1000 ई.पू.)
इस काल की तिथि निर्धारण जितनी विवादास्पद रही है उतनी ही इस काल के लोगों के बारे में सटीक जानकारी। इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि इस समय तक केवल इसी ग्रंथ (ऋग्वेद) की रचना हुई थी। मैक्स मूलर के अनुसार आर्य का मूल निवास मध्य ऐशिया है।आर्यो द्वारा निर्मित सभ्यता वैदिक काल कहलाई। आर्यो द्वारा विकसित सभ्य्ता ग्रामीण सभ्यता कहलायी। आर्यों की भाषा संस्कृत थी।
Rigvedic kal General Knowledge in Hindi
- ऋग्वैदिक काल में लोग जिस सार्वभौमिक सत्ता में विश्वास रखते थे वह एकेश्वर्वाद थी।
- आर्यों का धर्म बहुदेववादी था। वे प्राकृतिक भक्तियों-वायु, जल, वर्षा, बादल, आग और सूर्य आदि की उपासना करते थे।
- ऋग्वैदिक काल में लोग अपनी भौतिक आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए यज्ञ और अनुष्ठान के माध्यम से प्रकृति का आह्वान करते थे।
- ऋग्वेद में देवताओं की संख्या 33 करोड़ बताई गई है।
- ऋग्वैदिक काल में आर्यो के प्रमुख देवताओं में इन्द, अग्नि, रुद्र, मरुत, सोम और सूर्य शमिल थे।
- ऋग्वैदिक काल का सबसे महत्वपूर्ण देवता इन्द्र है। इसे युद्ध और वर्षा दोनों का देवता माना जाता था।
- ऋग्वैदिक काल में इन्द्र के बाद दूसरा स्थान अग्नि का था। अग्नि का कार्य मनुष्य एवं देवता के बीच मध्यस्थ स्थापित करने का था। 200 सूक्तों में अग्नि का उल्लेख मिलता है।
- ऋग्वैदिक काल में मूर्ति पूजा का अस्तित्व नहीं मिलता है।
- ऋग्वैदिक काल में देवताओं में तीसरा स्थान वरुण का था। इसे जल का देव माना जाता था।
- ऋग्वेद के एक मण्डल में केवल एक ही देवता की स्तुति में श्लोक है. वह देवता सोम है।
- शिव को त्रयंबक कहा गया है।
- ऋग्वेद में हल के लिए लांगल अथवा 'सीर' शब्द का प्रयोग मिलता है।
- सिंचाई का कार्य नहरों से लिया जाता था। ऋग्वेद में नहर शब्द के लिए 'कुल्या' का प्रयोग मिलता है।
- उपजाऊ भूमि को 'उर्वरा' कहा जाता था।
- ऋग्वेद के चौथे मण्डल में संपूर्ण मंत्र कृषि कार्यों से सबद्ध है। ऋग्वेद के 'गव्य' एवं 'गव्यति' शब्द चारागाह के लिए प्रयुक्त हैं।
- भूमि निजी संपत्ति नहीं होती थी। उस पर सामूहिक अधिकार था।
- घोड़ा आर्यों का अति उपयोगी पशु था।
- आर्यों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन था। वे गाय, बैल, भैंस, बकरी और घोड़े आदि पालते थे।
- आकाश के देवता -- सूर्य, घौस, मिस्त्र, पूषण, विष्णु, ऊषा और सविफ।
- अंतरिक्ष के देवता- इन्द्र. मरुत, रुद्र और वायु
- पृथ्वी के देवता - अग्नि, सोम, पृथ्वी, बृहस्पति और सरस्वती माना जाता था।
- ऋग्वैदिक काल में पशुओं के देवता पूषण थे, जो उत्तर वैदिक काल में शूद्रों के देवता बन गये।
- ऋग्वैदिक काल में जंगल की देवी को 'अरण्यानी' कहा जाता था।
- ऋग्वेद में ऊषा, अदिति, सूर्या आदि देवियों का भी वर्णन मिलता है।
- प्रसिद्ध गायत्री मंत्र का उल्लेख सर्वप्रथम ऋग्वेद में मिलता है, जो सूर्य से संबंधित देवी सावित्री को संबोधित है।
- ऋग्वैदिक काल में व्यापार हेतु दूर देशों तक व्यापार करने वाले व्यक्ति को 'पाणि' कहा जाता है।
- ऋग्वैदिक काल में 'गण' और 'वात' का उल्लेख व्यावसायिक संघ के रूप में किया जाता था।
- वाणिज्य व्यापार पर पणियों का एकाधिकार था।
- व्यापार, स्थल एवं जल दोनों मार्गों से होता था।
- सूदखोर को 'वेकनाट' कहा जाता था।
- क्रय विक्रय के लिए विनिमय प्रणाली (रुपये-पैसे) का आविर्भाव हो चुका था।
- गाय और निष्क विनिमय (लेन-देन) के माध्यम थे।
- ऋग्वेद में कहीं पर भी नगरों का उल्लेख नहीं मिलता है।
- इस काल में सोना, तांबा, और कांसा धातुओं का प्रयोग होता था।
- ऋग्वैदिक काल में ऋण लेने व देने की प्रथा प्रचलित थी, जिसे 'कुसीद' कहा जाता था।
- ऋग्वेद में बढ़ई, सथकार, बुनकर, चर्मकार, कुम्हार आदि कारीगारों के उल्लेख से इस काल के व्यवसाय का पता चलता है।
- ऋग्वेद में वैद्य के लिए 'भीषक' शब्द का प्रयोग मिलता है।
- ऋग्वैदिक काल में 'करघा' को 'तसर' कहा जाता था।
- बढ़ई के लिए 'तसण' शब्द का उल्लेख मिलता है।
- ऋग्वैदिक काल में मिट्टी के बर्तन बनाने का कार्य एक व्यवसाय था।
- ऋग्वेद में किसी परिवार का एक सदस्य कहता है- "मैं कवि हूँ, मेरे पिता वैद्य हैं और माता चक्की चलाने वाली है, भिन्न-भिन्न व्यवसाओं से जीविकोपार्जन करते हुए हम एक साथ रहते हैं।"
- हिरव्य एवं निष्क शब्द का प्रयोग स्वर्ण के लिए किया जाता था। इनका उपयोग द्रव्य के रूप में भी किया जाता था।
- ऋग्वेद में 'अनस' शब्द का प्रयोग 'बैलगाड़ी' के लिए किया गया है।
- ऋग्वैदिक काल में दो अमूर्त देवता थे, जिन्हें श्रद्धा एवं मनु कहा जाता था।
- ऋग्वेद में सोम देवता के बारे में सर्वाधिक उल्लेख मिलता है।
- अग्नि को अतिथि कहा गया है क्योंकि मातरिश्वन उन्हें स्वर्ग से धरती पर लाया था।
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