Kabir ke dohe : संत कबीर दास जी के 100 प्रसिद्ध दोहे
हेलो दोस्तों, इस आर्टिकल में कबीर के दोहे दिए जा रहे हैं। भक्तिकाल के कवियों में कबीरदास का नाम शीर्ष स्थानों में लिया जाता है। विभिन्न परीक्षाओं में भी कबीर के दोहे से जुड़े प्रश्न अक्सर पूछे जाते हैं। कभी-कभी किसी बड़ी बात का उदाहरण देने के लिए भी कबीर के दोहे उपयोग किया जाता है। कबीर के दोहे जीवन की वास्तविकता को प्रदर्शित करते हैं। क्यूंकि ये दोहे कबीर ने अपने जीवन के अनुभवों को लेकर लिखे हैं।
बचपन से ही मुझे दोहा पढना बहुत पसंद हैं क्या आपको भी दोहा पढ़ना अच्छा लगता हैं - आज की इस कबीर के दोहे में मैंने अपने पसंदीदा दोहे को भी सामिल किया हैं आशा करता हु आपको भी जरुर पसंद आयेगा -
कबीर के दोहे (Kabir ke dohe in Hindi)
1. बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर॥
2 . गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय॥
3. यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान ।
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान॥
4. माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे॥
5. दुःख में सुमिरन सब करें सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे होय॥
6. तिनका कबहूँ ना निंदिये, जो पाँव तले होय ।
कबहूँ उड़ आँखों मे पड़े, पीर घनेरी होय॥
7. करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब॥
8. माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दें, मन का मनका फेर॥
9. जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होए ।
यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोए॥
10. कबीर माला मनहि कि, और संसारी भीख ।
माला फेरे हरि मिले, गले रहट के देख॥
11. जाति न पुछो साधू की, पूछ लीजिये ज्ञान ।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान॥
12. जहाँ दया तहाँ धर्म है, जहाँ लोभ तहाँ पाप ।
जहाँ क्रोध तहाँ काल है, जहाँ क्षमा तहाँ आप॥
13. सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराज ।
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए॥
14. ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये ।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए॥
15. बुरा देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय ।
जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय॥
16. कबीरा ते नर अन्ध हैं, गुरु को कहते और हरि को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर॥
17. चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये ।
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए॥
18. माया मरी न मन मरा, मर-मर गया शरीर ।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर॥
19. मालिन आवत देख के, कलियन कहे पुकार ।
फूले फूले चुन लिए, कलि हमारी बार॥
20. माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय ।
इक दिन ऐसा आएगा, मै रौंदूंगी तोय॥
21. नींद निशानी मौत की, उठ कबीरा जाग ।
और रसायन छांड़ि के, नाम रसायन लाग॥
22. दुर्लभ मानुष जनम है, देह न बारम्बार ।
तरुवर ज्यों पत्ती झड़े, बहुरि न लागे डार॥
23. माँगन मरण समान है, मति माँगो कोई भीख ।
माँगन ते मरना भला, यही सतगुरु की सीख॥
24. आया था किस काम को, तू सोया चादर तान ।
सूरत सम्हाल ऐ गाफिल, अपना आप पहचान॥
25. गारी हीं सों उपजे, कलह, कष्ट और मींच ।
हारि चले सो साधु है, लागि चले सो नीच ॥
26. अवगुण कहूँ शराब का, आपा अहमक़ साथ ।
मानुष से पशुआ करे, दाय गाँठ से खात ॥
27. अटकी भाल शरीर में, तीर रहा है टूट ।
चुम्बक बिना निकले नहीं, कोटि पट्ठ्न को फूट॥
28. कबीरा जपना काठ कि, क्या दिखलावे मोय ।
हृदय नाम न जपेगा, यह जपनी क्या होय ॥
29. वैद्य मुआ रोगी मुआ, मुआ सकल संसार ।
एक कबीरा ना मुआ, जेहि के राम अधार ॥
30. राम रहे वन भीतरे, गुरु की पूजी न आस ।
कहे कबीर पाखंड सब, झूठे सदा निराश ॥
31. तीरथ गए थे एक फल, संत मिले फल चार ।
सतगुरु मिले अनेक फल, कहें कबीर विचार ॥
32. सुमरण से मन लाइए, जैसे पानी बिन मीन ।
प्राण तजे बिन बिछड़े, संत कबीर कह दिन ॥
33. कामी, क्रोधी, लालची इनसे भक्ति न होय ।
भक्ति करे कोई सूरमा, जाति, वरन, कुल खोय ॥
34. अंतर्यामी एक तुम, आत्मा के आधार ।
जो तुम छोड़ो हांथ तो, कौन उतारे पार ॥
35. प्रेम न बाड़ी उपजै, प्रेम न हाट बिकाय ।
राजा प्रजा जेहि रुचें, शीश देई ले जाय ॥.
36. प्रेम प्याला जो पिये, शीश दक्षिणा देय ।
लोभी शीश न दे सके, नाम प्रेम का लेय ॥
37. जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान।
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान॥
38. जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ।
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ॥
39. कागा का को धन हरे, कोयल का को देय ।
मीठे वचन सुना के, जग अपना कर लेय॥
40. नहीं शीतल है चंद्रमा, हिंम नहीं शीतल होय ।
कबीरा शीतल सन्त जन, नाम सनेही सोय ॥
इन्हें भी पढ़े -
41. आये है तो जायेंगे, राजा रंक फ़कीर ।
इक सिंहासन चढी चले, इक बंधे जंजीर ॥
42. साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुंब समाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु भी भूखा ना जाय ॥
43. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥
44. कुटिल वचन सबसे बुरा, जा से होत न चार।
साधू वचन जल रूप है, बरसे अमृत धार ॥
45. पढ़े गुनै सीखै सुनै मिटी न संसै सूल।
कहै कबीर कासों कहूं ये ही दुःख का मूल ॥
46. ज्ञान रतन का जतन कर, माटी का संसार।
हाय कबीरा फिर गया, फीका है संसार॥
47. मन हीं मनोरथ छांड़ी दे, तेरा किया न होई।
पानी में घिव निकसे, तो रूखा खाए न कोई॥
48. कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी
एक दिन तू भी सोवेगा, लम्बे पांव पसारी ॥
49. जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही ।
सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही॥
50. जल ज्यों प्यारा माहरी, लोभी प्यारा दाम ।
माता प्यारा बारका, भगति प्यारा नाम॥
51. जिन घर साधू न पुजिये, घर की सेवा नाही।
ते घर मरघट जानिए, भुत बसे तिन माही॥
52. ते दिन गए अकारथ ही, संगत भई न संग।
प्रेम बिना पशु जीवन, भक्ति बिना भगवंत॥
53. फूटी आँख विवेक की, लखे ना सन्त-असन्त ।
जाके संग दस-बीस हैं, ताको नाम महन्त॥
54. जहाँ काम तहाँ नाम नहिं, जहाँ नाम नहिं वहाँ काम ।
दोनों कबहुँ नहिं मिले, रवि रजनी इक धाम॥
55. बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि।
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि॥
56. अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप॥
57. दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार।
तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार॥
58. हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना॥
59. जब गुण को गाहक मिले, तब गुण लाख बिकाई।
जब गुण को गाहक नहीं, तब कौड़ी बदले जाई॥
60. मन हीं मनोरथ छांड़ी दे, तेरा किया न होई।
पानी में घिव निकसे, तो रूखा खाए न कोई॥
कबीर के दोहे पीडीऍफ़ डाउनलोड - Kabir ke dohe
इस पीडीऍफ़ में 900 से अधिक कबीर के दोहे के समावेश हैं जिन्हें आप कभी भी कही भी पढ़ सकते हैं - PDF का डायरेक्ट डाउनलोड लिंक निचे दिया गया हैं -
Top 10 Kabir ke Dohe in Hindi कबीर के बेहतरीन दोहे
निचे हमने आपको कबीर सबसे अधिक प्रसिद्ध दोहे को बताया हैं साथ आपको सभी दोहों के अनुवाद भी दिए गए हैं आपके लिए इनमे से कौन सा दोहा एकदम नया जिसे आपने कभी नही. सुना या पढ़ा था हमे कमेंट के माध्यम से जरुर बताएं -
कबीर दास के 10 दोहे अर्थ सहित -
दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय
जो सुख में सुमिरन करे, दुख काहे को होय
जो सुख में सुमिरन करे, दुख काहे को होय
अनुवाद - हम सभी परेशानियों में फंसने के बाद ही ईश्वर को याद करते हैं. सुख में कोई याद नहीं करता. जो यदि सुख में याद किया जाएगा तो फिर परेशानी क्यों आएगी.
जैसे तिल में तेल है, ज्यों चकमक में आग
तेरा साईं तुझ में है, तू जाग सके तो जाग
अनुवाद -जिस तरह तिल में तेल होने और चकमक में आग होने के बाद दिखलाई नहीं पड़ता. ठीक उसी तरह ईश्वर को खुद के भीतर खोजने की जरूरत है. बाहर खोजने पर सिर्फ निराशा हाथ लगेगी.
पोथि पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोए
ढाई आखर प्रेम के, पढ़ा सो पंडित होए
अनुवाद -कबीर कहते हैं कि किताबें पढ़ कर दुनिया में कोई भी ज्ञानी नहीं बना है. बल्कि जो प्रेम को जान गया है वही दुनिया का सबसे बड़ा ज्ञानी है.
चिंता ऐसी डाकिनी, काट कलेजा खाए
वैद बिचारा क्या करे, कहां तक दवा लगाए
अनुवाद -चिंता रूपी चोर सबसे खतरनाक होता है, जो कलेजे में दर्द उठाता है. इस दर्द की दवा किसी भी चिकित्सक के पास नहीं होती.
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर
आशा, तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर
अनुवाद -इच्छाएं कभी नहीं मरतीं और दिल कभी नहीं भरता, सिर्फ शरीर का ही अंत होता है. उम्मीद और किसी चीज की चाहत हमेशा जीवित रहते हैं.
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय
जो मन खोजा आपना, तो मुझसे बुरा न कोय
अनुवाद -जब मैं पूरी दुनिया में खराब और बुरे लोगों को देखने निकला तो मुझे कोई बुरा नहीं मिला. और जो मैंने खुद के भीतर खोजने की कोशिश की तो मुझसे बुरा कोई नहीं मिला.
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर
अनुवाद -इस दोहे के माध्यम से कबीर कहना चाहते हैं कि सिर्फ बड़ा होने से कुछ नहीं होता. बड़ा होने के लिए विनम्रता जरूरी गुण है. जिस प्रकार खजूर का पेड़ इतना ऊंचा होने के बावजूद न पंथी को छाया दे सकता है और न ही उसके फल ही आसानी से तोड़े जा सकते हैं.
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब
पल में परलय होएगी, बहुरी करोगे कब
अनुवाद -कल का काम आज ही खत्म करें और आज का काम अभी ही खत्म करें. ऐसा न हो कि प्रलय आ जाए और सब-कुछ खत्म हो जाए और तुम कुछ न कर पाओ.
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोए
अपना तन शीतल करे, औरन को सुख होए
अनुवाद -हमेशा ऐसी बोली और भाषा बोलिए कि उससे आपका अहम न बोले. आप खुद भी सुकून से रहें और दूसरे भी सुखी रहें.
धीरे-धीरे रे मन, धीरे सब-कुछ होए
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होए
अनुवाद -दुनिया में सारी चीजें अपनी रफ्तार से घटती हैं, हड़बड़ाहट से कुछ नहीं होता. माली पूरे साल पौधे को सींचता है और समय आने पर ही फल फलते हैं.
साईं इतनी दीजिए, जा में कुटुंब समाए
मैं भी भूखा न रहूं, साधू न भूखा जाए
अनुवाद -यहां कबीर ईश्वर से सिर्फ उतना ही मांगते हैं जिसमें पूरा परिवार का खर्च चल जाए. न कम और न ज्यादा. कि वे भी भूखे न रहें और दरवाजे पर आया कोई साधू-संत भी भूखा न लौटे.
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