भारत में मिसाइल टेक्नोलॉजी (Missile Technology in India)
मिसाइल टेक्नोलॉजी (भारत)
भारत की सतह से सतह पर मार करने वाली नई मिसाइल 'प्रगति' भी सामरिक दृष्टि से अहम है जिसका अभी हाल ही में परीक्षण हुआ। प्रगति रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा सेना के लिए तैयार की गई प्रहार मिसाइल पर आधारित इस मिसाइल को सिओल (दक्षिण कोरिया) में चल रही 'सियोल इंटरनेशनल एअरोस्पेस एंड डिफेंस एक्जीबिशन (एडीईएक्स-2013)' में भी पेश किया गया था जिसमें 33 देशों से 300 कंपनियों ने भाग लिया था।
संभवतः ऐसा पहली बार हुआ है कि जब भारत ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बड़े पैमाने पर भागीदारी की है। अग्नि श्रेणी की मिसाइलों का निर्माण भारत के सबसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट्स में से एक है। उल्लेखनीय है कि रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) अग्नि-5 मिसाइल की सफलता के बाद अब परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम इंटर कॉन्टीनेंटल बैलेस्टिक मिसाइल (आईसीबीएम) अग्नि-6 विकसित कर रहा है।
अंतर्महाद्वीपीय बैलेस्टिक मिसाइल अग्नि-6 की मारक क्षमता 6000 से 10000 किलोमीटर की दूरी तक की होगी। यह मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टारगेटेबल री-एंट्री व्हीकल (एमआईआरवी) मिसाइल है जो एक साथ अनेक परमाणु हथियार ले जा सकेगी। इससे हमारी रक्षा ताकत कई गुना बढ़ जाएगी। हालांकि अग्नि 5, 1000 किलोग्राम से अधिक का परमाणु वारहेड ले जाने में सक्षम होगी। यह पहली ऐसी मिसाइल है जिसकी मारक सीमा में आने वाले चीन के सभी इलाके, पूरा एशिया, अधिकांश अफ्रीका व आधा यूरोप आ जाएंगे। यद्यपि अग्नि-5 मिसाइल की मारक सीमा में भले ही पूरा चीन आता हो लेकिन उसके विमानवाही पोत जो कि चीन से दूर प्रशांत महासागर व अटलांटिक महासागर में तैनात हैं, वहां से भी वे भारत पर मिसाइल दाग सकते हैं।
सुपरसोनिक मिसाइल ब्रह्मोस को भी इस श्रृंखला में शामिल किया जा सकता है जिसे भारत ने चीन-अरुणाचल प्रदेश सीमा पर तैनात करने का निर्णय लिया है जबकि चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत के नाम से पुकारता है। ब्रह्मोस के तीन स्वरूप विकसित किए जा रहे हैं। अब पानी के अंदर व हवा में प्रक्षेपित किए जाने वाले संस्करणों पर काम जारी है। ब्रह्मोस ब्लॉक-2 से आतंकवादी शिविरों समेत बेहद सटीक लक्ष्यों को भेदा जा सकता है और यह सर्जिकल स्ट्राइक करने में पूरी तरह से सक्षम है। भारत की प्रमुख मिसाइलें भारत की विभिन्न मिसाइलें उसकी सुरक्षा प्रणाली का बेहद अहम हिस्सा हैं जिनमें कुछ जमीन से जमीन पर मार करने वाली हैं और कुछ जमीन से हवा में। भारत के पास समुद्र से दागी जा सकने वाली मिसाइलें भी हैं।
इनमें से कुछ प्रमुख हैं : -
अग्नि-1 (Agni-I)
अग्नि-1 पर काम 1999 में शुरू हुआ था, लेकिन परीक्षण 2002 में किया गया। इसे कम मारक क्षमता वाली मिसाइल के तौर पर विकसित किया गया था। यह 700 किलोमीटर तक मार करने में सक्षम है। भारत ने परमाणु क्षमता संपन्न अग्नि-1 प्रक्षेपास्त्र का दिसंबर 2011 में फिर से सफल परीक्षण किया। इसे को पहले ही भारतीय सेना में शामिल कर लिया गया है, लेकिन सेना से जुड़े लोगों के प्रशिक्षण और उनकी कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए इसका समय-समय पर प्रायोगिक परीक्षण किया जाता है।
अग्नि-2 (Agni-II)
जमीन से जमीन पर मार करने वाली अग्नि-2 का वर्ष 2009 में परीक्षण असफल हो जाने के पश्चात पुनः व्हीलर आईलैंड से मई 2010 में सफल परीक्षण किया गया। इसकी मारक क्षमता दो हजार किलोमीटर है और यह एक टन तक का पेलोड ले जा सकती है। इसमें अति आधुनिक नेवीगेशन सिस्टम और तकनीक है। सितंबर 2011 में एक बार फिर अग्नि-2 का सफल परीक्षण किया गया जिसके बाद यह भारतीय सेना में शामिल कर ली गयी।
अग्नि-3 (Agni-III)
भारत ने परमाणु हथियार ले जाने की क्षमता वाली मिसाइल अग्नि-3 का पहले 2006 में परीक्षण किया जिसे आंशिक रूप से ही सफल बताया गया। वर्ष 2007 एवं 2008 में इसका पुनः सफल परीक्षण किया। इसकी मारक क्षमता 3500 किलोमीटर है और यह सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइल है। यह 1.5 टन का पेलोड ले जा सकती है और इसमें अति आधुनिक कंप्यूटर और नेवीगेशन सिस्टम है।
अग्नि-4 (Agni-IV)
ओडिशा के व्हीलर द्वीप से करीब तीन हजार किलोमीटर से अधिक दूरी तक सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइल अग्नि-4 का सफल प्रक्षेपण नवंबर 2011 को किया गया। यह पहले तीन मिसाइलों के मुकाबले काफी हल्की है। परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम लगभग एक हजार किलोग्राम के पेलोड क्षमता वाली अग्नि-4 बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि-2 मिसाइल का ही उन्नत रूप है। पहली बार इसका प्रक्षेपण 2010 में दिसंबर में हुआ था, लेकिन कुछ तकनीकी कारणों से ये सफल नहीं हो पाया था।
अग्नि 5 (Agni-V)
अग्नि-5 भारत का पहली अंतर-महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल है, जो 5000 किलोमीटर की दूरी तक मार करने में सक्षम है। अग्नि-5 की मारक क्षमता के दायरे में यूरोप के कई देशों के साथ-साथ चीन भी शामिल है। अमेरिका, रूस, फ्रांस और चीन के बाद भारत दुनिया का पांचवां ऐसा देश है, जिसके पास अंतर महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल है। इस मिसाइल का वजन 50 टन और इसकी लंबाई 17.5 मीटर है और यह एक टन का परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है। अग्नि-5 20 मिनट में 5000 किमी की दूरी तय कर सकती है। इसके लॉचिग सिस्टम में कैनिस्टर तकनीक का इस्तेमाल किया गया है जिसके चलते इस मिसाइल को कहीं भी बड़ी आसानी से ट्रांसपोर्ट किया जा सकता है। अग्नि-5 तीन स्तरीय, पूरी तरह से ठोस ईधन पर आधारित मिसाइल है जिसमें मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टार्गेटेबल रीएंट्री वेहिकल (एमआरटीआरवी) विकसित किया गया है। बनाने के लिए भारत ने माइक्रो नेवीगेशन सिस्टम, कार्बन कंपोजिट मैटेरियल से लेकर कंप्यूटर व सॉफ्टवेयर तक ज्यादातर चीजें स्वदेशी तकनीक से विकसित कीं। यही नहीं इसका प्रयोग छोटे सैटेलाइट लांच करने और दुश्मनों के सैटेलाइट नष्ट करने में भी किया जा सकता है। फिलहाल भारत को चीन और पाकिस्तान की तरफ से जिस तरह की चुनौती मिल रही है, उसे देखते हुए यह जरूरी है कि भारत इस प्रकार की क्षमता संपन्न हो। उल्लेखनीय है कि चीन ने कुछ वर्ष पहले ही 12 हजार किलोमीटर दूर तक मार करने वाली तुंगफंग-31 ए बैलिस्टिक मिसाइलों का विकास करने में सफल | हो चुका है। उल्लेखनीय है कि इससे पहले अग्नि 1, अग्नि 2, अग्नि 3 और अग्नि 4 का सफल प्रक्षेपण | किया जा चुका है जिसकी मारक क्षमता क्रमशः 700 किमी, 2000 किमी, 2500 किमी और 3500 किमी थी। जबकि रूस के पास आर-36एम है जिसकी मारक क्षमता 16000 किमी, अमेरिका के पास यूजीएम-133 एवं ट्राइडेंट 2 मिसाइले हैं जिनकी मारक क्षमता 11300 किमी है। ब्रिटेन के ट्राइटेंड 2, चीन के पास टीएफ-31ए और फ्रांस के पास एम-51 है जिनकी मारक क्षमताएं क्रमशः 11300 किमी, 11270 किमी और 10,000 किमी है।
पृथ्वी मिसाइलें (Prithvi)
वर्ष 2011 में ओडिशा के चांदीपुर से पृथ्वी-2 मिसाइल का सफल परीक्षण किया गया था जिसकी मारक क्षमता 350 किलोमीटर है। यह सतह से सतह पर मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइल है जिसमें किसी भी एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल को झांसा देकर निशाना साधने की क्षमता है। पृथ्वी रेंज की मिसाइलें भारत ने स्वदेशी तकनीक से विकसित की है और भारतीय सेना में इसे शामिल किया जा चुका है। भारत के एकीकृत मिसाइल विकास कार्यक्रम के तहत पृथ्वी पूर्ण रूप से स्वदेश में निर्मित पहला बैलेस्टिक मिसाइल है। इसके माध्यम से 500 किलोग्राम तक के बम गिराए जा सकते हैं और यह द्रवित इंजन से संचालित होती है।
धनुष मिसाइल
धनुष मिसाइल को नौसेना के इस्तेमाल के लिए विकसित किया गया है और यह 350 किलोमीटर तक की दूरी पर स्थित लक्ष्य को भेद सकती है। यह पृथ्वी मिसाइल का नौसनिक (नेवल) संस्करण है जो 500 किलोग्राम तक के हथियार ढो सकती है। इसे डीआरडीओ ने विकसित किया है और निर्माण भारत डाइनेमिक्स लिमिटिड ने किया है।
ब्रहमोस मिसाइल
28 अप्रैल, 2002 को भारत ने ध्वनि की गति से भी तेज चलने वाली सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल का परिक्षण किया था और इसे ब्रहमोस का नाम दिया गया। भारत ने इसका निर्माण रूस के सहयोग से किया। दोनों देशों के बीच 1998 में ये ज्वाइंट वेंचर हुआ था। ब्रहमोस 290 किलोमीटर तक की मार करने की क्षमता रखती है। यह जहाज, पनडुब्बी और हवा समेत कई प्लेटफॉर्म से दागी जा सकती है और यह मिसाइल ध्वनि की गति से 2.8 गुना ज्यादा गति से उड़ान भर सकती है। मार्च 2012 को हुए अभ्यास परीक्षण के बाद ब्रहमोस मिसाइल प्रणाली अब सेना की दो रेजीमेंट में पूरी तरह ऑपरेशनल हो गई हैं। सागरिका मिसाइल भारत के पास सागरिका नाम की ऐसी मिसाइल भी है जो समुद्र में से दागी जा सकती है और जो परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है। सबमरीन लांच्ड बैलिस्टिक मिसाइल (एसएलबीएम) सागरिका को 2008 में विशाखापत्तनम के तटीय क्षेत्र से छोड़ा गया था। यह मिसाइल 700 किलोमीटर की दूरी तक मार कर सकती है। इस तरह की मिसाइलें कुछ ही देशों के पास हैं।
आकाश मिसाइल
2003 में भारत ने जमीन से हवा में मार करने वाली आकाश मिसाइल का परीक्षण किया। 700 किलोग्राम के वजन वाली यह मिसाइल 55 किलोग्राम का पेलोड ले जा सकती है। इसकी गति 2.5 माक है। यह मिसाइल प्रणाली कई निशानों को एक साथ भेद सकती है और मानवरहित वाहन, युद्धक विमान और हेलीकॉप्टरों से दागी मिसाइलों को नष्ट कर सकती है। इस प्रणाली को भारतीय पैट्रियट कहा जाता है। आकाश मिसाइल प्रणाली 2030 और उसके बाद तक भारतीय वायु सेना का अहम हिस्सा रहेगी।
प्रहार मिसाइल
प्रहार जमीन से जमीन तक मार करने वाली मिसाइल है जिसका जुलाई 2011 में परीक्षण किया गया। इसकी मारक क्षमता 150 किलोमीटर है। ये कई तरह के वारहेड (मुखास्त्र) ले जाने की क्षमता रखती है। 200 किलोग्राम का पेलोड ले जाने की क्षमता रखने वाली इस मिसाइल का रिएक्शन टाइम काफी कम है यानी प्रतिक्रिया काफी जल्दी होती है। यह मल्टी बैरल रॉकेट और मध्यम रेंज बैलिस्टिक मिसाइल के बीच की खाई को कम करती है।
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