भारत में वनों के प्रकार - भारत में वन सम्पदा (types of forests in india)
हेलो दोस्तों, इस लेख में भारत में वनों के प्रकार - भारत में वन सम्पदा के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है।जीव के जीवित रहने के लिए सबसे आवश्यक चीजों में से एक वायु है। वायु पेड़-पौधों से मिलती है। मनुष्य को जितनी अधिक शुद्ध वायु मिलती है उसका स्वास्थ्य उतना ही अधिक ठीक रहता है। इसके लिए पर्यावरण में अधिक पेड़ पौधों का होना आवश्यक है। चूँकि भारत एक गावों का देश है अत: यंहा वनों का क्षेत्रफल अधिक पाया जाता है। अधिक वनों के होने से वन संपदा का भंडार भी बहुत अधिक है। इस लेख में भारत में वनों के प्रकार - भारत में वन सम्पदा के बारे में जानने वाले हैं जो विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में अक्सर पूछे जाते रहते हैं।
कुल वन संपदा की दृष्टि से भारत का विश्व में 10वाँ एवं एशिया में चौथा स्थान है। भारत के क्षेत्रफल के लगभग 22.50 प्रतिशत भाग में वन क्षेत्र है, लेकिन इसका वितरण - क्षेत्र असमान है।
भारत में वनों के प्रकार - भारत में वन सम्पदा
वनों के संरक्षण के लिए सरकार ने राष्ट्रीय वन्य कार्यक्रम (एन.एफ.ए.पी.) चलाया है, जिसका उद्देश्य वनों की कटाई को रोकना तथा देश के एक-तिहाई भाग को वृक्षों से ढंकना है वनों के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय वन कोष की भी स्थापना की गई।
- जून, 1981 में स्थापित भारतीय वन सर्वेक्षण द्वारा देश में वन संसाधनों के सर्वेक्षण का कार्य किया जाता है।
- इसका मुख्यालय देहरादून में है और चार क्षेत्रीय कार्यालय कोलकाता, बंगलुरु, नागपुर तथा शिमला में हैं।
- 1927 में राष्ट्रीय वन अधिनियम बनाया गया |
- 1894 में पहली वन नीति बनी।
- इसे 1952 में संशोधित करके राष्ट्रीय वन नीति, 1952 कहा गया।
- 1988 में इसे पुनः संशोधित किया गया।
- राष्ट्रीय वन नीति, 1952 के अनुसार, देश का 33 प्रतिशत भाग वनाच्छादित होना चाहिये।
- 2003 में राष्ट्रीय वन आयोग का गठन किया गया।
- 1980 में वन संरक्षण अधिनियम बना।
भारत का वन प्रवेश, विश्व के वन प्रदेश के औसत (34.5) से कम है। यह स्वीडन (58%), ब्राजील (57%), संयुक्त राज्य अमेरिका (44% ) तथा जर्मनी ( 41% ) से भी कम है। इसी प्रकार भारत का शीर्ष वन प्रवेश मात्र 0.07 हेक्टेयर है, जो विश्व औसत 1.10 हेक्टेयर से कम है।
भारत में क्षेत्रानुसार वनों का वितरण
भौगोलिक प्रदेश | कुल वन प्रदेश का प्रतिशत |
प्रायद्वीपीय पठार तथा पहाड़ियाँ | 57 |
हिमालय प्रदेश | 18 |
पूर्वी घाट तथा पूर्वी तटीय मैदान | 10 |
पश्चिमी घाट तथा तटीय मैदान | 10 |
भारत का मैदानी क्षेत्र | 5 |
कुल | 100 |
छत्तीसगढ़, अरुणाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और असम आदि राज्यों में दो-तिहाई भाग वनों से ढका हुआ है, लेकिन अन्य राज्यों में यह औसत से कम है।
क्षेत्रफल की दृष्टि से मध्य प्रदेश (77265 वर्ग किमी.) पहले, अरुणाचल प्रदेश दूसरे, छत्तीसगढ़ तीसरे, ओडिशा चौथे एवं महाराष्ट्र पाँचवे स्थान पर हैं।
प्रतिशतता की दृष्टि से मिजोरम (82.98 प्रतिशत) प्रथम स्थान पर है। /*अरुणाचल प्रदेश (81.25 प्रतिशत) दूसरे, नागालैंड (80.49 प्रतिशत) तीसरे, मेघालय (69.48 प्रतिशत) चौथे एवं त्रिपुरा (67.38 प्रतिशत) पाँचवे स्थान पर हैं।
राज्यों में सबसे कम वन हरियाणा में (मात्र 3.97 प्रतिशत) हैं। इसी प्रकार पंजाब में 4.82 प्रतिशत, राजस्थान में 4.78 प्रतिशत एवं उत्तर प्रदेश में मात्र 5.71 प्रतिशत भू-क्षेत्र में ही वन हैं। केंद्रशासित प्रदेशों में क्षेत्रफल की दृष्टि से अंडमान निकोबार द्वीप (8249 वर्ग किमी.) प्रथम स्थान पर है, जबकि प्रतिशतता की वृष्टि से लक्षद्वीप (84.38 प्रतिशत) प्रथम स्थान पर है।
भारत में वनों के कई प्रकार हैं, जैसे-
- आरक्षित वन.
- संरक्षित वन एवं
- अवर्गीकृत वन
आरक्षित वनों में वृक्षों की कटाई और पशुओं की चराई पर पूरी तरह से प्रतिबंध होता है। यह वृक्षों से भरा वन होता है। यहाँ लोगों का प्रवेश पूरी तरह वर्जित होता है। इसके अंतर्गत देश का 53 प्रतिशत भाग आता है।
संरक्षित वन सरकार की देखरेख में रहते हैं, लेकिन यहाँ लाइसेंस प्राप्त लोगों को वृक्षों की कटाई और पशुओं की चराई का अधिकार होता है। इस प्रकार के वन क्षेत्र को बहुत कीमती माना जाता है। इसके अंतर्गत देश का 29 प्रतिशत भाग आता है।
अवर्गीकृत वन: यहाँ वृक्षों को काटने एवं मवेशियों को चराने पर कोई प्रतिबंध नहीं होता। इसके अंतर्गत देश का 18 प्रतिशत भाग आता है।
वर्षा के आधार पर वन निम्न प्रकार के होते हैं:
1. उष्णकटिबंधीय सदाबहार वनः ये वन उन प्रदेशों में पाये जाते हैं, जहाँ 150 सेमी. से अधिक वर्षा एवं 25°-27° सेंटीग्रेड ताममान होता है। इनकी पत्तियां प्रतिवर्ष नहीं झड़तीं इसलिए इन्हें सदाबहार वन कहते हैं। ये काफी घने होते हैं तथा ये वर्ष भर हरे-भरे रहते हैं। बाँस, जारूल, बेंत, महोगनी, आबनूस, सिनकोना, रबड़, आइरन वुड और आदि इनमें पाये जाने वाले प्रमुख वृक्ष हैं। उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन मुख्य रूप से महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, पश्चिम बंगाल, असम, अंडमान-निकोबार एवं लक्षद्वीप में पाए जाते हैं।
2. उष्णकटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वनः इन्हें मानसून वन भी कहा जाता है। ये वन उन प्रदेशों में पाये जाते हैं, जहाँ 100 से 120 सेमी. तक वर्षा होती है। ये वन सह्याद्रि, प्रायद्वीपीय भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग एवं हिमालय की गिरिपाद में पाये जाते हैं। त्रिफला, खैर, सागौन, शीशम, चंदन, आम, महुआ, खैर आदि इस प्रकार के वनों में पाए जाने वाले प्रमुख वृक्ष हैं।
3. उष्णकटिबंधीय कटीले वनः ये वन उन प्रदेशों में पाये जाते हैं, जहाँ 75 से 100 सेमी. तक वर्षा होती है। ये वन कच्छ, सौराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, ऊपरी गंगा का मैदान और प्रायद्वीपीय भारत के कुछ क्षेत्रों में पाये जाते हैं। ओक, खैर, बबूल, झाऊ, खेजड़ा, कंजु, ताड़ और नीम आदि इसके प्रमुख वृक्ष हैं|
4. उपोष्ण पर्वतीय वनः ये वन उन प्रदेशों में पाये जाते हैं, जहाँ 100 से 200 सेमी. वर्षा एवं 15 °- 22° सेंटीग्रेड ताममान होता है। इस प्रकार के वन सामान्यतः हिमालय, पूर्वोत्तर राज्यों, उत्तराखंड आदि के ढाल वाले क्षेत्रों में मिलते हैं। इन वनों को दक्षिण भारत में शोला वन कहा जाता है। चीड़ या पाइन इनका सबसे प्रमुख वृक्ष है।
5. शुष्क पर्णपाती वन: ये वन उन प्रदेशों में पाये जाते हैं, जहाँ औसत वर्षा 100 से 150 सेमी, के बीच होती है। ये वन बंद तथा जटिल होते हैं। इन वनों का विस्तार हिमालय के तराई भाग और नदियों के किनारों से लेकर प्रायद्वीपीय पठार के मध्यवर्ती भाग तक है| इनमें घास एव लतायुक्त पौधों का ज्यादा विकास होता है।
6. हिमालय के आर्द्र वनः ये भारत के उन राज्यों में पाये जाते हैं, जहाँ पर्वतीय क्षेत्र हैं। चीड़, साल, ओक, चेस्टनट आदि इनके प्रमुख वृक्ष हैं।
7. हिमालय के शुष्क शीतोष्ण वनः ये जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में पाये जाते हैं । चिल्गोजा, मैपिल, जैतून, शहतूत, पैरोलिया आदि इनके प्रमुख वृक्ष हैं।
8. पर्वतीय आर्द्र शीतोष्ण वनः ये पूरे हिमालय जम्मू-कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक फैले हुये हैं। ये 1500 से 3300 मीटर की ऊँचाई में पाये जाते हैं। सिल्वर फर, मैपल, मैग्नोलिया, देवदार, ओक, चीड़ आदि इनके प्रमुख वृक्ष हैं।
9. अल्पाइन तथा अर्द्ध-अल्पाइन वन : ये वन हिमालय के 2500 से लेकर 3500 मीटर तक की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पाये जाते हैं। स्प्रूस, बर्च, अमेसिया आदि इनके प्रमुख वृक्ष हैं।
10. मरुस्थलीय वनस्पतिः यह पश्चिमी राजस्थान से लेकर उत्तरी गुजरात तक फैली हुई है। यहाँ औसत वार्षिक वर्षा 50 सेमी से कम होती है। इसमें कुछ झाड़ीदार पौधे, कैक्टस, खेजरा, खजूर आदि यहाँ के प्रमुख हैं।
11. ज्वारीय या कच्छ वनस्पतिः ये बंगाल की खाड़ी से लेकर ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना एवं गुजरात तक फैले हुये हैं। मैंग्रोव इनका सबसे प्रमुख वृक्ष है। दलदली इलाकों में होने के कारण इन वनों के वृक्षों में जलीय अनुकूलन पाया जाता है।
वनों से संबंधित आँकड़ें
प्रकार | क्षेत्र (हजार वर्ग कि.मी.) | भौगोलिक क्षेत्र का प्रतिशत |
वन क्षेत्र | 678.333 | 20.64 |
सघन वन | 51.285 | 1.56 |
औसत घने वन | 287.669 | 10.32 |
खुले वन | 287.669 | 8.76 |
कच्छ वनस्पति क्षेत्र | 4.461 | 0.14 |
सघन कच्छ वनस्पति क्षेत्र | 1.162 | 0.032 |
कम सघन कच्छ- वनस्पति | 1.657 | 0.057 |
खुले कच्छ वनस्पति क्षेत्र | 1.642 | 0.051 |
भारत में वनों के प्रकार - भारत में वन सम्पदा | types of forests in india
वानिकी अनुसंधान तथा शिक्षा परिषद
इसका गठन 1987 में पर्यावरण तथा वन मंत्रालय के अधीन किया गया था। इसका मुख्य कार्य वानिकी के क्षेत्र अनुसंधान एवं शिक्षा संबंधी कार्य करना है। इसके अंतर्गत निम्न संस्थायें कार्य करती हैं:
1.वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून,
2. सामाजिक वानिकी तथा पर्यावरण केंद्र, इलाहाबाद,
3. शुष्क प्रदेश वानिकी अनुसंधान संस्थान, जोधपुर,
4. वन उत्पादकता केंद्र, रांची,
5. वर्षा तथा आई पर्णपाती वन संस्थान, जोरहट,
6. शीतोष्ण वन अनुसंधान संस्थान, शिमला,
7. काष्ठ विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी संस्थान, बंगलुरु,
8. वन आनुवांशिकी तथा वृक्ष प्रजनन संस्थान, कोयंबटूर,
9. उष्ण कटिबंधीय वानिकी अनुसंधान संस्थान, जबलपुर एवं 10. वानिकी अनुसंधान तथा मानव संसाधन विकास संस्थान, छिंदवाड़ा।
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इस लेख में हमने भारत में वनों के प्रकार - भारत में वन सम्पदा के बारे में जाना। विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओ में भारत में वनों के प्रकार - भारत में वन सम्पदा से जुड़े प्रश्न पूछे जाते हैं।
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