भक्ति आंदोलन | भक्ति आंदोलन विशेषताएं , सिद्धांत और महापुरुष

भक्ति आंदोलन | भक्ति आंदोलन विशेषताएं , सिद्धांत और महापुरुष | Bhakti movement


आज हम इस पोस्ट के द्वारा  भक्ति आंदोलन के महत्वपूर्ण प्रश्न के बारे में जहाँ हमने भक्ति आंदोलन के विशेषताएं , सिद्धांत और महापुरुष बारे में जानेंगे और साथ ही भक्ति आन्दोलन को प्रेरणा प्रदान करने वाले महापुरुष के बारे में जानने वाले है , जैसे उनका जन्म कब हुआ, कहाँ हुआ, और पूरी घटना चक्र हम जानने वाले है।
Bhakti movement
  • भक्ति आंदोलन के महत्वपूर्ण प्रश्न
  • भक्ति आंदोलन का उद्भव और विकास
  • भक्ति आंदोलन के उदय की पृष्ठभूमि PDF
  • भक्ति आंदोलन कब शुरू हुआ
  • भक्ति आंदोलन के सिद्धांत 
  • भक्ति आंदोलन की प्रमुख विशेषताएं लिखिए

भक्ति आन्दोलन को प्रेरणा प्रदान करने वाले महापुरुष

शंकराचार्य (788-820) 

शंकराचार्य का ज्ञान मार्ग व अद्वैतवाद अब साधारण जनता के लिए बोधगम्य नहीं रह गया था। मुस्लिम शासकों द्वार आये दिन मूर्तियों को नष्ट एवं अपवित्र कर देने के कारण, बिना मूर्ति एवं मंदिर के ईश्वर की अराधना के प्रति लोगों का झुकाव बढ़ा, जिसके लिए उन्हें भक्ति मार्ग का सहारा लेना पड़ा। दक्षिण में वैष्णव संतों द्वारा 4 मतों की स्थापना की गई, जो निम्नलिखित हैं 

  • विशिष्टाद्वैतवाद की स्थापना 12वीं सदी में रामानुजाचार्य ने की। द्वैतवाद की स्थापना 13वीं शताब्दी में मध्वाचार्य ने की। 
  • शुद्धाद्वैतवाद की स्थापना 13वीं सदी में विष्णुस्वामी ने की। द्वैताद्वैवाद की स्थापना 13वीं सदी में निम्बार्काचार्य ने की। 
  • इन सन्तों ने भक्ति मार्ग को ईश्वर प्राप्ति का साधन मानते हुए 'ज्ञान', 'भक्ति' और 'समन्वय' को स्थापित करने का प्रयास किया। इन संतो की प्रवृति 
  • सगुण भक्ति की थी। इन्होंने राम, कृष्ण, शिव, हरि आदि के रूप में आध्यात्मिक व्याख्याएं प्रस्तुत कीं। 14वीं एवं 15वीं शताब्दी में भक्ति आन्दोलन का नेतृत्व कबीरदास के हाथों में था । 
  • इस समय रामानन्द, नामदेव, कबीर, नानक, दादू, रविदास (रैदास), तुलसीदास एवं चैतन्य महाप्रभु जैसे लोगों के हाथ में इस आन्दोलन की बागडोर थी |
  • आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित पीठ: ज्योतिष्पीठ बद्रीनाथ (उत्तराखण्ड), गोवर्धनपीठ पुरी (उड़ीसा), शारदापीठ द्वारिका (गुजरात), श्रृंगेरीपीठ मैसूर (कर्नाटक).

रामानुजाचार्य ( 1017-1137 ) – 

रामानुज का जन्म 1017 ई. में तिरुपति नामक स्थान पर हुआ था। माता का नाम 'कान्ति देवी' तथा 'पिता' का नाम 'असुर केशव सोमथजी' था। इनका बचपन का नाम 'लक्ष्मण' थाइनका दार्शनिक मत 'विशिष्टाद्वैतवाद' तथा सम्प्रदाय, श्री सम्प्रदाय था । चोल शासक कुलोत्तुंग द्वितीय से मतभेद के कारण 'रामानुज़' होयसल शासक विष्णुवर्धन के दरबार में चले गए और उसे वैष्णव सम्प्रदाय का अनुयायी बनाया। 

रामानन्द ( 14-15वीं सदी ई.) 

भक्ति आन्दोलन को दक्षिण से उत्तर में लाने का श्रेय रामानन्द को ही दिया जाता है। वे रामानुज की पीढ़ी के प्रथम संत थे। उन्होंने सभी जातियों एवं धर्म के लोगों को. अपना शिष्य बनाकर एक तरह से जातिवाद पर कड़ा प्रहार किया। उनके शिष्यों में कबीर (जुलाहा), सेना (नाई), रैदास ( चमार) आदि थे। उन्होंने एकेश्वरवाद पर बल देते हुए राम की उपासना की बात कही। सम्भवतः हिन्दी में उपदेश देने वाले प्रथम वैष्णव संत रामानन्द ही थे। 

कबीरदास ( 1398-1510 ई.) 

कबीर का जन्म 1440 ई. में वाराणसी में हुआ था। ये सुल्तान सिकन्दर शाह लोदी के समकालीन थे। सूरत गोपाल इनका मुख्य शिष्य था । मध्यकालीन संतों में कबीरदास का साहित्यिक एवं ऐतिहासिक योगदान निःसन्देह अविस्मरणीय है। 

गुरुनानक ( 1469-1538 ई.) 

गुरु नानक का जन्म 1469 में तुलवन्डी नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम कालू तथा माता का नाम तृता था। कबीर के बाद तत्कालीन समाज को प्रभावित करने वालों में नानक का महत्त्वपूर्ण स्थान है। गुरु का व्यक्तित्व असाधारण था। उनमें पैगम्बर, दार्शनिक, राजयोगी, गृहस्थ, त्यागी, धर्मसुधारक, समाज सुधारक, कवि, संगीतज्ञ, देशभक्त, विश्वबन्धु सभी के गुण उत्कृष्ट मात्रा में विद्यमान थे। उनकी रचना ' जपुजी' का सिक्खों के लिए वही महत्त्व है जो हिंदुओं के लिए गीता का है। 

सिक्ख संप्रदाय के दस गुरु 

* गुरु नानकदेव 1469-1539 ई. सिक्ख धर्म के प्रवर्तक 

* गुरु अंगद 1538-1552 ई. गुरुमुखी लिपि के जनक 

* गुरु अमरदास 1552-1574 ई. 

* गुरु रामदास 1574-1581 ई. अमृतसर के संस्थापक 

* गुरु अर्जुन देव 1581-1606 ई. स्वर्ण मंदिर की स्थापना 

*गुरु हरगोविंद सिंह 1606-1645 ई. अकाल तख्त की स्थापना 

* गुरु हरराय 1645-1661 ई. 

* गुरु हरि किशन 1661-1664 ई. 

* गुरु तेग बहादुर सिंह 1664-1675 ई. 

* गुरु गोविन्द सिंह 1675-1708 ई. खालसा सेना का संगठन 


पढ़ें- 1857की क्रांति।

चैतन्य महाप्रभु ( 1486 से 1533 ई.) 

बंगाल में भक्ति आन्दोलन के प्रवर्तक चैतन्य महाप्रभु "सगुण भक्ति मार्ग का अनुसरण करते हुए, कृष्ण भक्ति पर विशेष बल दिया। अन्य सन्तों की तरह चैतन्य ने भी जात-पात एवं अनावश्यक धार्मिक कुरीतियों का विरोध किया । 

रैदास 

रैदास चमार जाति के थे। वे रामानन्द के बारह शिष्यों में से एक थे। ये बनारस में मोची का काम करते थे । निर्गुण ब्रह्मा के उपासक रैदास ने हिन्दू और मुसलमानों में कोई भेद नहीं माना। वे ईश्वर की एकता में विश्वास करते थे, किन्तु उन्होंने अवतारवाद का खण्डन किया। उन्होंने 'रायदासी सम्प्रदाय' की स्थापना की।

दादू दयाल ( 1544-1603) – 

अन्य सन्तों की तरह अन्ध विश्वास, मूर्ति पूजा, जात पात, तीर्थयात्रा आदि के विरोधी दादू दयाल ने आचरण एवं चरित्र की शुद्धता पर बल दिया। दादू द्वारा 'दादूपंथी' एक भेदभाव मुक्त पंथ है। उनके समय में 'निपक्ष' नामक आन्दोलन की शुरुआत की गई। अन्य संत कवियों, जैसे कबीर, नामदेव, रविदास (रैदांस) और हरिदास की रचनाओं के साथ भी किंचित परिवर्तित छंद संग्रह पंचवाणी में शामिल हैं। यह ग्रंथ दादू पंथ के . धार्मिक ग्रंथों में से एक है। 

सुन्दरदास 

सुन्दरदास दादू दयाल के शिष्य, एक कवि और सन्त थे । उनका जन्म राजस्थान के बनिया परिवार में हुआ था। उनके विचार 'सुन्दर विलास' नामक पुस्तक में मिलते हैं। 

वीरभान 

इनका जन्म पंजाब के 'नारनौल' के समीप हुआ। उन्होंने सतनामियों के सम्प्रदाय की स्थापना की। सतनामियों की धर्मपुस्तक का नाम 'पोथी' है। उन्होंने जातिवाद एवं मूर्तिपूजा का खण्डन किया । 

निम्बार्काचार्य ( 12वीं शताब्दी )  

निम्बार्काचार्य का जन्म तमिलनाडु के 'बेल्लारी' में हुआ था। इन्हें 'सुदर्शन चक्र' का अवतार माना जाता है। इन्होंने 'सनक सम्प्रदाय की स्थापना की तथा 'द्वैताद्वैतवाद' नामक दर्शन दिया। इनका जन्म दक्षिण भारत के गोदावरी नदी के तट पर स्थित वैदूर्यपत्तन के निकट अरुणाश्रम में हुआ था। 

सूरदास (1478-1583 ई.) 

सूरदास का जन्म 1478 ई. में रुनकता नामक ग्राम में हुआ था। वे बल्लभाचार्य के शिष्य थे। सूरदास को 'पुष्टिमार्ग' का जहाज़ कहा जाता है। वे 'अष्टछाप' के कवि थे। उन्होंने ब्रजभाषा में तीन ग्रन्थों की रचना की, जो 'सूरसागर', 'सूरसरावली' तथा 'साहित्य लहरी' के नाम से जानी जाती हैं। गोस्वामी हरिराय के भाव प्रकाश' के अनुसार सूरदास का जन्म दिल्ली के पास ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

पढ़ें- भारतीय कला और संस्कृति।

बल्लभाचार्य ( 1479-1531 ई.)  

बल्लभाचार्य ने कृष्णदेव राय के समय विजयनगर में वैष्णव सम्प्रदाय की प्रतिष्ठा की । वे द्वैतवाद में विश्वास करते थे औऱ ‘श्रीनाथजी' के रूप में उन्होंने कृष्ण भक्ति पर बल दिया। उनके महत्त्वपूर्ण धार्मिक ग्रन्थों में 'सुबोधिनी' और 'सिद्धान्त रहस्य' शामिल हैं। उनका अधिकतम समय काशी और वृंदावन में व्यतीत हुआ। इलाहाबाद में उन्होंने चैतन्य से भेंट की थी। 

तुलसीदास ('1532-1623 ई.) 

तुलसीदास का जन्म 1523 ई. में बाँदा जिले के 'राजापुर' नामक ग्राम में हुआ था। वे मुगल शासक . अकबर के समकालीन थे। उन्होंने ईश्वर के सगुण रूप को स्वीकार करते हुए राम को ईश्वर का अवतार मानकर उनकी भक्ति पर विशेष बल दिया। तुलसीदास ने अवधी भाषा में रामचरितमानस की रचना की, 'वैराग्य संदीपनी', 'श्रीकृष्ण गीतावली' तथा 'विनयपत्रिका' आदि प्रमुख हैं। इन्होंने समय को देखते हुए लोकभाषा में 'रामायणं' लिखा । 

मीराबाई ( 1498-1546 ई.)  

मीराबाई का जन्म 1498 ई. में मेड़ा जिले के 'कुदकी ' नामक ग्राम मे हुआ था। वे 'सिसोदिया वंश' की राजकुमारी थीं। इनका विवाह सिसोदिया वंश के राणा साँगा के पुत्र भोजराज से हुआ था। मीराबाई के ईष्ट देव श्रीकृष्ण थे । 

शंकरदेव ( 1499-1569ई.) 

 इन्हें असोम का चैतन्य भी कहा जाता है। इनके द्वारा | स्थापित सम्प्रदाय एकशरण सम्प्रदाय कहलाता शंकरदेव ने निरूकाम भक्ति पर बल दिया है| 

ज्ञानेश्वर (1211-96 ई.) 

इन्होंने श्रीमदभगवद्गीता का मराठी रूप में भावार्थ दीपिका लिखी। इन्हें महाराष्ट्र के रहस्यावादी संप्रदाय का संस्थापक माना जाता है। 

नामदेव ( 1270-1350 ई.)  

यह ज्ञानेश्वर के शिष्य थे तथा माता का नाम गौनाबाई था। इनक संबंध वरकरी संप्रदाय से था। उनके शिष्यों में सभी जाति के लोग थे। इनके पद गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित हैं। ". 

एकनाथ (1538-99 ई.) 

 इनका जन्म औरंगाबाद के पैठन में हुआ था। इन्होंने कीर्तन, गायन को लोकप्रिय बनाया। इनकी प्रमुख लिखित पुस्तके भावार्थ रामायण, शक्तिमाणी स्वयंवर, गौलना, भरूद आदि हैं। 

तुकाराम ( 1598-1650 ई.)

इनका जन्म पूणा के देही में हुआ था। इन्होंने लोकप्रिय काव्य अभंग लिखा। यह शिवाजी के समकालीन थे। लोकप्रियता की दृष्टि से महानतम् संत थे। इन्होंने शिवाजी द्वारा भेजी गई भेंट को अस्वीकार कर दिया था । 

रामदास ( 1608-81 ई.) 

इन्होंने परकार्थ संप्रदाय की स्थापना की तथा महाराष्ट्र धर्म को राजनीतिक रूप प्रदान किया। इन्होंने दासबोध, आनंद भुवन इत्यादि पुस्तकों की रचना की। इन्हें धकरकरी संप्रदाय का प्रमुख संत माना जाता है।

भक्ति आन्दोलन की कुछ विशेषताएँ

  • यह आन्दोलन न्यूनाधिक पूरे दक्षिणी एशिया (भारतीय उपमहाद्वीप) में फैला हुआ था।
  • यह लम्बे काल तक चला।
  • इसमें समाज के सभी वर्गों (निम्न जातियाँ, उच्च जातियाँ, स्त्री-पुरुष, सनातनी, सिख, मुसलमान आदि) का प्रतिनिधित्व रहा।
  • इस आन्दोलन के परिणामस्वरूप संस्कृत के बजाय क्षेत्रीय भाषाओं में भारी मात्रा में हिन्दू साहित्य की रचना हुई जो मुख्यतः भक्ति काव्य एवं संगीत के रूप में है।

भक्ति आंदोलन के प्रभाव

  • भक्ति आन्दोलन के द्वारा हिन्दू समाज ने इस्लाम के प्रचार, जोर-जबरजस्ती एवं राजनैतिक हस्तक्षेप का कड़ा मुकाबला किया।
  • इसका इस्लाम पर भी प्रभाव पड़ा। (सूफीवाद)

भक्ति आन्दोलन के प्रमुख सन्त

  • अलवर (लगभग २री शताब्दी से ८वीं शताब्दी तक; दक्षिण भारत में)
  • नयनार (लगभग ५वीं शताब्दी से १०वी शताब्दी तक; दक्षिण भारत में)
  • आदि शंकराचार्य (788 ई से 820 ई)
  • रामानुज (1017 - 1137)
  • बासव (१२वीं शती)
  • माध्वाचार्य (1238 - 1317)
  • नामदेव (1270 - 1309 ; महाराष्ट्र)
  • एकनाथ - गीता पर भाष्य लिखा ; विठोबा के भक्त
  • सन्त ज्ञानेश्वर (1275 - 1296 ; महाराष्ट्र)
  • जयदेव (12वीं शताब्दी)
  • निम्बकाचार्य (13वीं शताब्दी)
  • रामानन्द (15वीं शती)
  • कबीरदास (1440 - 1510)
  • दादू दयाल (1544-1603 ; कबीर के शिष्य थे)
  • गुरु नानक (1469 - 1538)
  • पीपा (जन्म 1425)
  • पुरन्दर (15वीं शती; कर्नाटक)
  • तुलसीदास (1532 - 1623)
  • चैतन्य महाप्रभु (1468 - 1533 ; बंगाल में)
  • शंकरदेव (1449 - 1569 ; असम में)
  • वल्लभाचार्य (1479 - 1531)
  • सूरदास (1483 - 1563 ; बल्लभाचार्य के शिष्य थे)
  • मीराबाई (1498 - 1563 ; राजस्थान में ; कृष्ण भक्ति)
  • हरिदास (1478 - 1573 ; महान संगीतकार जिहोने भगवान विष्णु के गुण गाये)
  • तुकाराम (शिवाजी से समकालीन ; विठल के भक्त)
  • समर्थ रामदास (शिवाजी के गुरू ; दासबोध के रचयिता)
  • त्यागराज (मृत्यु 1847)
  • रामकृष्ण परमहंस (1836 - 1886)
  • भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद (1896 - 1977)

भक्ति आंदोलन कब शुरू हुआ

इतिहास भक्ति आन्दोलन का आरम्भ दक्षिण भारत में आलवारों एवं नायनारों से हुआ जो कालान्तर में (800 ई से 1700 ई के बीच) उत्तर भारत सहित सम्पूर्ण दक्षिण एशिया में फैल गया। इस हिन्‍दू क्रांतिकारी अभियान के नेता शंकराचार्य थे जो एक महान विचारक और जाने माने दार्शनिक रहे।

भक्ति आंदोलन का सिद्धांत 

एक ईश्वर मेंं आस्था- ईश्वर एक है वह सर्व शक्तिमान है । बाह्य आडम्बरों का विरोध- भक्ति आंदोलन के संतों ने कर्मकाण्ड का खण्डन किया । सच्ची भक्ति से मोक्ष एवं ईश्वर की प्राप्ति होती है । सन्यास का विरोध- भक्ति आंदोलन के अनुसार यदि सच्ची भक्ति है ईश्वर में श्रद्धा है तो गृहस्थ में ही मोक्ष मिल सकता है ।

तो ये थी जानकारी भक्ति आंदोलन के महत्वपूर्ण प्रश्न के बारे में जहाँ हमने भक्ति आंदोलन के विशेषताएं , सिद्धांत और महापुरुष बारे में जाना | आशा करते हैं यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी होगी कृपया इस जानकारी को सोशल मीडिया में शेयर जरुर करें।

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