बौद्ध धर्म (Buddhism) | बौद्ध धर्म के सिद्धांत, संप्रदाय, चार आर्य सत्य
बौद्ध धर्म क्या है ? (What is Buddhism)
बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा गौतम बुद्ध थे। शुद्धोधन इनके पिता (शाक्यगण के प्रधान) थे तथा महामाया (कोलियागण की राजकुमारी) माता थीं। 563 ई.पू. में लुम्बिनी(वर्तमान- नेपाल) में इनका जन्म हुआ था। इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था तथा कौडिन्य ने भविष्यवाणी की थी आगे चलकर यह बालक संन्यासी अथवा सम्राट बनेगा। 29 वर्ष की अवस्था में इन्होंने गृहत्याग (महाभिनिष्क्रमण) किया। आलार कालाम इनके प्रथम गुरू थे तथा द्वितीय गुरू रूद्रक रामपुत्त थे। गया के निरंजना नदी के तट पर वट वृक्ष के नीचे वैशाख पूर्णिमा के दिन इन्हें निर्वाण ज्ञान प्राप्त हुआ।
ज्ञान प्राप्ति के बाद सुजाता नामक स्त्री द्वारा लाया गया खीर खाये। बुद्ध ने प्रथम उपदेश ऋषिवन (सारनाथ) में दिया (धर्मचक्रप्रवर्तन ) । 483 ई.पू. में कुशीनगर में चंद के घर इनका महापरिनिर्वाण (मृत्यु) हुआ।
इन्होंने सर्वप्रथम उपदेश मृगदाव (सारनाथ) में उपालि, आनंद, अश्वजीत, मोगल्लना एवं श्रेयपुत्रा को दिया । " बुद्ध ने सर्वाधिक उपदेश श्रावस्ती में दिये । प्रथम महिला भिक्षु प्रजापति गौतमी थीं।
बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्य-
- दुःख - विश्व में सर्वत्रा दुःख ही दुःख है ।
- दुःख का कारण - दुःख उत्पन्न होने का मूल कारण तृष्णा
- दुःख निरोध - दुःख निवारण के लिए तृष्णा को नष्ट करना अनिवार्य है। दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा दुःख के मूल अविद्या के नाश के लिए
- दुःख निरोध का मार्ग :- तृष्णा से मुक्त होने के अष्टांगिक मार्ग का अनुसरण करना चाहिए।
बौद्ध धर्म का परम लक्ष्य है- निर्वाण की प्राप्ति, जो कि इसी जन्म में प्राप्त किया जा सकता है। बौद्ध धर्म पर सांख्य दर्शन का प्रभाव है। कर्मवाद की मान्यता है तथा तर्क को प्रधानता प्राप्त है। बुद्ध आत्मा व ईश्वर के अस्तित्व पर विश्वास नहीं रखते थे। परंतु पुनर्जन्म में विश्वास था ।
बौद्ध का सिद्धांत (Buddhist doctrine)
- अष्टांगिक मार्ग- सम्यक् दृष्टि, सम्यक् संकल्प, सम्यक् वाणी, सम्यक् कर्म, सम्यक् आजीव, सम्यक् व्यायाम, सम्यक् स्मृति एवं सम्यक् समाधि ।
- प्रतीत्य समुत्पाद- प्रतीत्य समुत्पाद ही बुद्ध की संपूर्ण शिक्षाओं का सार एवं आधार स्तंभ है। इसका अर्थ है किसी वस्तु के होने पर किसी अन्य वस्तु की उत्पत्ति होना ।
- मध्यम प्रतिपदा - बुद्ध ने अति का निषेध करते हुए मध्यम मार्ग को अपनाने की सलाह दी ।
- जरामरण- विश्व के प्रत्येक प्रकार के दुःख का . सामूहिक नाम जरामरण है।
- क्षणिकवाद - विश्व का प्रत्येक वस्तु निरंतर परिवर्तनशील है अर्थात् क्षणभुंगर है।
बौद्ध धर्म के संप्रदाय
हीनयान:- हीनयान अर्थात् छोटा वाहन । ये लोग बुद्ध के मौलिक सिद्धांतों पर विश्वास करने वाले रूढ़ीवादी थे। मूर्तिपूजा एवं भक्ति में विश्वास नहीं रखते थे। वे बुद्ध को केवल मार्गदर्शक स्वीकार करते थे ईश्वर नहीं।
महायान:- महायान अर्थात् बड़ा वाहन । ये लोग बुद्ध को ईश्वर मानते थे। ये मूर्तिपूजा एवं भक्ति में विश्वास रखते थे।इसमें बोधसत्व की अवधारणा है। महासंघिक सप्रदाय से प्रभावित इस मत की स्थापना प्रथम सदी में हुई।
- इनकी प्रसिद्ध रचना माध्यमिक कारिका है। इन्होंने कश्मीर में संस्कृत में ग्रन्थ लिखे। वैभाषिक . प्रचलित इस मत के प्रमुख आचार्य वसुमित्रा एवं बुद्धदेव थे ।
- शुन्यवाद या माध्यमिक इसके प्रवर्तक नागार्जुन थे।
- वज्रयान सातवीं सदी में तंत्र- मंत्र के प्रभाव से वज्रयान संप्रदाय का उद्भव हुआ। इसमें तारा क देवी को प्रमुख स्थान प्राप्त था।
आज के इस पोस्ट में हमने बौद्ध धर्म के बारे में विस्तार से जाना। बौद्ध धर्म के अनुयायी पुरे विश्व में पाए जाते हैं बौद्ध धर्म से संबंधित प्रश्न प्रतियोगी परीक्षा में पुछे जाते रहते हैं ।
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