अंग्रेजों के प्रशासनिक एवं न्यायिक सुधार (Administrative and Judicial Reforms of the British)
हेलो दोस्तों, इस लेख में हम अंग्रेजों के प्रशासनिक एवं न्यायिक सुधार के बारे में विस्तार से जानने वाले हैं। विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे- UPSC, STATE PCS, RRB, NTPC, RAILWAY, SSC CGL, SSC CHSL, SSC MTS, BANKING PO, BANKING CLERK, CDS, VYAPAM इत्यादि में अंग्रेजों के प्रशासनिक एवं न्यायिक सुधार से सम्बंधित सवाल पूछे जाते हैं। भारत में अंग्रेजों के शासन कल के दौरान बहुत से प्रशासनिक एवं न्यायिक सुधार हुए। जो आज भी हमारी कानून व्यवस्था में दृष्टिगत है। प्रशासनिक मामलों में काफी सुधार आया था। ब्रिटिश प्रशासनिक नीति (British administrative policy) के अंतर्गत कानून के शासन तथा न्याय पालिका की स्वतंत्रता इस प्रणाली की विशेषता थी। स्वतंत्रता के बाद संविधान के आने से क़ानूनी मामलों को और भी ज्यादा ध्यान दिया गया।
अंग्रेजों के प्रशासनिक एवं न्यायिक सुधार Administrative and Judicial Reforms of the British in Hindi
- पुलिस व्यवस्था में सुधार का कार्य सर्वप्रथम लार्ड कार्नवालिस ने किया। उसने पुरानी पुलिस व्यवस्था का आधुनिकीकरण किया।
- ग्रामीण क्षेत्रों में जमींदारों के पुलिस संबंधी अधिकार समाप्त कर दिए गए। प्रत्येक जिले को पुलिस अधीक्षक के अधीन रखा गया।
- पुलिस अधीक्षक, जिले का सबसे बड़ा पुलिस अधिकारी था। प्रत्येक थाने में दरोगा भी रखा गया।
- गर्वनर जनरल लार्ड मेयो ने 1808 में प्रत्येक डिवीजन के लिए एक एसपी. की नियुक्ति की तथा इसकी सहायता के लिए बहुत से गोयेंदा (Spies) नियुक्त किये गए।
- गर्वनर जनरल बैंटिंक ने पुलिस अधीक्षक का कार्यालय समाप्त कर दिया तथा जिले का कलेक्टर या दंडाधिकारी को पुलिस विभाग का प्रमुख बना दिया।
- 1860 में पुलिस आयोग की सिफारिशों से भारतीय पुलिस अधिनियम 1861 बनाया गया।
- 1902 में, पुलिस आयोग ने केंद्र में केंद्रीय जांच ब्यूरो एवं प्रांतों में सी. आई.डी. की स्थापना की सिफारिश की।
- न्यायिक सुधारों की दिशा में सबसे पहला प्रयास गवर्नर र जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने किया। उसने प्रत्येक जिले में एक जिला दीवानी अदालत व एक जिला फौजदारी अदालत की स्थापना की
- 1773 के रेग्यूलेटिंग एक्ट द्वारा कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई।
- लार्ड कार्नवालिस ने सदर निजामत अदालत को कलकत्ता स्थानांतरित कर दिया तथा जिला फौजदारी न्यायालय समाप्त कर दिए गए तथा इनके स्थान पर मुर्शिदाबाद, कलकत्ता, ढाका एवं पटना में चार भ्रमणकारी न्यायालयों की स्थापना की गई।
- लार्ड कार्नवालिस ने अपने न्यायिक सुधारों को अंतिम रूप देकर उन्हें 1793 में एक संहिता (Code) के रूप में प्रस्तुत किया, जिसे कार्नवालिस संहिता कहते हैं।
- यह संहिता मुख्यतया 'शक्तियों के पृथक्करण' के सिद्धांत पर आधारित थी। इसके द्वारा राजस्व तथा न्याय प्रशासनों को पृथक् कर दिया गया यूरोपियों के मामलों को भी अदालतों के अधीन कर दिया गया।
- लार्ड कार्नवालिस को भारत में सिविल सेवा का जनक भी माना जाता है।
- विलियम बैंटिंक ने कार्नवालिस द्वारा स्थापित चार प्रांतीय अपीलीय तथा भ्रमणकारी न्यायालय समाप्त कर दिए तथा इनका कार्य कलेक्टरों तथा दंडनायकों को दे दिया गया, जो राजस्व तथा भ्रमणकारी आयुक्तों के अधीन होते थे।
- इस समय न्यायालयों की भाषा फारसी थी। भारतीय विधि को संहिताबद्ध करने के लिए 1833 में मैकाले की अध्यक्षता में एक विधि आयोग का गठन किया गया। इसके परिणामस्वरूप, दीवानी नियम संहिता (1859), भारतीय दंड संहिता (1860) तथा फौजदारी नियम संहिता (1861) का निर्माण किया गया।
- 1865 में सुप्रीम कोर्ट तथा सदर अदालतों का कलकत्ता, बंबई एवं मद्रास में स्थित उच्च न्यायालयों में विलय कर दिया गया।
- 1935 में एक संघीय न्यायालय की स्थापना (1937 में) की गई, जो आगे चलकर भारत का उच्चतम न्यायालय बना।
- भारत परिषद अधिनियम 1861 ई. से स्थानीय शासन के विकास की प्रक्रिया प्रारंभ की गई।
- 1870 ई. में लॉर्ड मेयो ने वित्त के विकेंद्रीकरण का प्रस्ताव तथा 1882 ई. में लॉर्ड रिपन ने अपना स्थानीय स्वशासन संबंधी प्रस्ताव पारित किया।
- 1908 ईमें स्थानीय स्वशासन की समीक्षा राजकीय आयोग द्वारा की गई।
- 1919 ई. के भारत शासन अधिनियम के तहत स्थानीय स्वशासन को लोकप्रिय सरकार के अधीन 'हस्तांतरित विषय' बना दिया गया।
- 1935 ई. के भारत सरकार अधिनियम के तहत प्रांतीय तथा स्थानीय करों के बीच के पृथक्करण को समाप्त कर दिया गया।
अंग्रेजों की लगान नीति (British rent policy in Hindi)
अंग्रेजों ने देश की लगान व्यवस्था के बारे में चार प्रकार की लगान पद्धतियों को अपनाया-
इजारेदारी व्यवस्था:
यह पद्धति 1772 में वारेन हेस्टिंग्स ने बंगाल में प्रारंभ की। इसमें पंचवर्षीय ठेके की व्यवस्था थी तथा जो सबसे अधिक बोली लगाता था उसे ही भूमि ठेके पर दी जाती थी।
स्थायी बंदोबस्तः
इसे कार्नवालिस ने 1790 में लागू किया। इसे 'जमींदारी व्यवस्था' या 'इस्तमरारी व्यवस्था' भी कहते हैं। इसमें जॉन शोर एवं चार्ल्स ग्रांट की भी प्रमुख भूमिका थी। इसकी अवधि 10 वर्ष थी। 22 मार्च, 1793 में इसे स्थायी कर दिया गया। यह व्यवस्था बंगाल, बिहार, ओडिशाउत्तर प्रदेश के बनारस तथा उत्तरी . कर्नाटक में लागू की गई इस व्यवस्था के तहत ब्रिटिश भारत के कुल क्षेत्रफल का लगभग 19 प्रतिशत भाग शामिल था। यह बंदोबस्त जमींदारों से किया गया। जमींदारों को वसूल किये गए लगान की कुल रकम का 10/11 भाग कम्पनी को देना था तथा 1/11 भाग स्वयं रखना था।
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रैयतवाड़ी व्यवस्था :
मद्रास के तत्कालीन गवर्नर (1820-27) टॉमस मुनरो द्वारा 1820 में प्रारंभ की गई इस व्यवस्था को मद्रास, बंबई एवं असम के कुछ भागों में लागू किया गया। बंबई में इस व्यवस्था को लागू करने में बंबई के गवर्नर एल्फिन्सटन ने महत्वपूर्ण सहायता की। इस व्यवस्था के अंतर्गत 51 प्रतिशत भूमि आयी। इस प्रणाली के अंतर्गत रैयतों से अलग-अलग समझौता कर लिया जाता था।
महालवाड़ी व्यवस्था :
लार्ड हेस्टिंग्स ने इसे मध्य प्रांत, यू.पी. (आगरा) एवं पंजाब में लागू किया। इसमें 30 प्रतिशत भूमि आयी। इस व्यवस्था में लगान बंदोबस्त एक पूरे गाँव या महाल में जमींदारों या प्रधानों के साथ किया गया, जो सामूहिक रूप से पूरे गाँव या महाल के प्रमुख थे।
इस पोस्ट में हमें अंग्रेजों के प्रशासनिक एवं न्यायिक सुधार के बारे में विस्तृत रूप में जाना। विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में अंग्रेजों के प्रशासनिक एवं न्यायिक सुधार से जुड़े सवाल पूछे जाते हैं। अत: परीक्षार्थियों को इसकी तैयारी अवश्य करनी चाहिए।
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