पूर्ण स्वराज्य के बारे में जानकारी | Complete Independence in Hindi - pdf download
आज के इस आर्टिकल में हम भारत के स्वतंत्रता के इतिहास के बारे में जानेंगे। पूर्ण स्वराज्य के लिए किये अथक प्रयासों के बारे में विस्तार से जानेंगे। पूर्ण स्वराज्य की लड़ाई बहुत ही लम्बी और चुनौती पूर्ण रही। इसके लिए भारत के अनेक महापुरुषों द्वारा अलग अलग नीतियाँ अपनाई गयीं। बहुत सारे विरोध प्रदर्शन हुए। बहुत सारे वीरों ने अपने प्राण गंवा दिए। तब जाकर 15 अगस्त 1947 को भारत को पूर्ण स्वराज्य की प्राप्ति हुई पूर्ण स्वराज्य से जुड़े प्रश्न विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे- UPSC, STATE PCS, RRB, SSC, NTPC, RAILWAY, BANKING PO, BANKING CLERK, IBPS इत्यादि में पूछे जाते हैं।
पूर्ण स्वराज्य (Complete Independence) : 9 दिसम्बर 1929 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज की घोषणा की थी। जवाहरलाल नेहरू 31 दिसम्बर 1929 अध्यक्ष चुने गये थे।
उस दौरान कुछ घटनाएँ हुई थी, जिसके बारे में संक्षिप्त जानकारी हम आपको दे रहे है-
कांग्रेस द्वारा पूर्ण स्वराज्य की मांग-
- कांग्रेस ने 31 दिसम्बर, 1929 को लाहौर अधिवेशन में रावी नदी के तट पर पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव स्वीकार किया।
- इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन छेड़ने का निश्चय किया गया। कांग्रेस ने प्रथम गोल मेज सम्मेलन (1930) में भी भाग न लेने का निश्चय किया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन-
- इस समय भारत में भयंकर आर्थिक मंदी का प्रकोप हुआ जिससे देश में बेरोजगारी फैली और छंटनी आदि के कारण देश के मजदूर भी सरकार के विरुद्ध आंदोलन में कूद पड़े।
- सन् 1930 में देश में चारों ओर उत्तेजना का वातावरण था। नेहरू रिपोर्ट को सरकार ने नामंजूर कर दिया और अपनी हठधर्मी पर अड़ी रही।
- ऐसी स्थिति में कांग्रेस ने गांधी जी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू करने का विचार बनाया।
- फरवरी 1930 में साबरमती सम्मेलन में आंदोलन छेड़ने के लिए गांधी जी को समस्त अधिकार प्रदान कर दिए गए फिर भी गांधी जी ने वायसराय को एक मौका और दिया।
डांडी मार्च-
- 12 मार्च, 1930 को गांधी जी तथा अन्य नेताओं ने डांडी की ओर प्रस्थान किया।
- यही उनका प्रसिद्ध डांडी मार्च था। 6 अप्रैल, 1930 को गांधीजी ने स्वयं नमक कर कानून तोड़ कर नमक बनाया।
- यह आंदोलन सगुणा देश में फैल गया।
- सरकार ने आंदोलन को कुचलने के लिए बल प्रयोग किया।
- इस आंदोलन में लगभग हजार सत्याग्रहियों को जेलों में लूंसा गया।
- जनता ने भी हिंसा का आश्रय लिया, पुलिस ने 25 व्यक्तियों को गोली से मार कर इसका बदला लिया।
- पेशावर में तो 24 अप्रैल से4 मई, 1930 तक अंग्रेजी शासन नहीं रहा।
- वहां सीमान्त गांधी (बादशाह खान) के खुदाई खिदमतगारों ने व्यवस्था कायम रखी।
- बाद में सेना ने पेशयम में पहुंचकर मशीन गनों से खुदाई खिदमतगारों को भून दिया।
- इसी समय एक गढ़वाली प्लाटून ने अपने पाय भाइयों पर गोली चलाने से इन्कार कर दिया।
1935 का गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया एक्ट-
- इस एक्ट के तहत प्रान्तों में द्वैध शासन समाप्त करके उत्तरदायी शासन की स्थापना की गई। लेकिन प्रान्तीय गवर्नरों को स्वविवेक से काम करने के व्यापक अधिकार दिए गए।
- एक्ट के तहत चुनाव हुए और कांग्रेस को 11 में से 6 प्रान्तों में स्पष्ट बहुमत मिला।
- 1937 में कांग्रेस के मंत्रिमंडल प्रान्तों में तब बने जब गवर्नरों ने इस बात का आश्वासन दे दिया कि वे दिन-प्रतिदिन के शासन में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।
- पंजाब, सिन्ध और बंगाल में मुस्लिम लीग की सरकारें बनी। कांग्रेस के मंत्रिमंडलों ने जन हित के अनेक कार्य किये।
द्वितीय विश्व युद्ध-
- सितम्बर 1939 में यूरोप में द्वितीय विश्व युद्ध आरंभ हो गया।
- वायसराय ने भारतीयों की सहमति लिए बिना भारत को इस युद्ध में शामिल घोषित कर दिया।
- इसके विरोध में प्रान्तों के कांग्रेसी मंत्रिमंडलों ने अक्टूबर में त्यागपत्र दे दिए।
- कांग्रेस ने मांग की कि ब्रिटिश सरकार युद्ध के उद्देश्यों तथा भारत संबंधी नीति के बारे में स्पष्ट घोषणा करे।
- कांग्रेसी मंत्रिमंडलों के त्यागपत्र देने पर मुस्लिम लीग को खुशी हुई और उसने 22 दिसम्बर को देश में 'मुक्ति दिवस' मनाया।
सशर्त सहयोग का प्रस्ताव-
- कांग्रेस ने जुलाई 1940 में युद्ध के बाद पूर्ण स्वतंत्रता और केन्द्र में सर्वदलीय राष्ट्रीय सरकार के गठन की शर्तों के आधार पर सरकार को युद्ध में पूर्ण सहयोग देने का प्रस्ताव पारित किया।
- किन्तु ब्रिटिश प्रधान मंत्री चर्चिल ने 8 अगस्त, 1940 को भारत के संबंध में अपनी नीति स्पष्ट करते हुए घोषणा की कि अटलांटिक चार्टर (प्रत्येक राष्ट्र के आत्मनिर्णय का अधिकार) केवल यूरोप के देशों पर ही लागू होता है।
- भारत और बर्मा (म्यांमार) पर नहीं। उन्होंने कहा, "मैं ब्रिटिश साम्राज्य का प्रधान मंत्री ब्रिटिश साम्राज्य को छिन्न-भिन्न करने (दिवाला निकालने) के लिए नहीं बना हूं।"
- उन्होंने कहा कि भारत को उपनिवेश का दर्जा देने का लक्ष्य है।
- उन्होंने भारतीयों से सहयोग की अपील की लेकिन कांग्रेस और लीग दोनों ने प्रस्ताव ठुकरा दिया।
- उधर कांग्रेस ने देशी रियासतों के जन आंदोलन को समर्थन देने का निर्णय किया।
क्रिप्स मिशन-
- युद्ध क्षेत्र में अंग्रेजों की निरन्तर हार से चिंतित होकर चर्चिल ने भारत का गतिरोध दूर करने के लिए 22 मार्च, 1942 को सर स्टेफर्ड क्रिप्स को भारत भेजा।
- क्रिप्स ने 20 दिन तक भारत में रह कर सभी दलों एवं सभी विचारधाराओं के व्यक्तियों से विस्तृत वार्ता की।
- क्रिप्स ने अपने प्रस्ताव में कहा कि युद्ध समाप्त होने के पश्चात् भारत को उपनिवेश का दर्जा दिया जाएगा
- भारत चाहे तो राष्ट्रमंडल से अलग हो सकेगा। युद्ध के बाद भारत में संविधान सभा का चुनाव हो और संविधान सभा भारत के लिए नया संविधान बनाये।
- क्रिप्स प्रस्तावों में अंतरिम व्यवस्था के रूप में रक्षा और विदेशी मामलों को छोड़ कर शेष सभी विभाग भारतीयों को दिये जाने की व्यवस्था भी की गई।
- इस प्रकार वाइसराय की कार्यकारिणी में उक्त दो विभाग छोड़ कर शेष सभी विभागों हेतु भारतीय नियुक्त किए जाने थे।
- क्रिप्स प्रस्तावों को गांधी जी ने, "एक दिवालिया बैंक के नाम भविष्य की तिथि का चैक बताया।
- कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग दोनों ने ही क्रिप्स प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया।
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आज के इस आर्टिकल में हमने पूर्ण स्वराज्य के लिए जो लड़ाई हमारे वीरों द्वारा लड़ी गयीं और पूर्ण स्वतंत्रता के जो अथक प्रयास किये उसके बारे में विस्तार से जाना।
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