भारत में पाई जाने वाली मिट्टी के प्रकार - Types of Soil in India
आज के इस आर्टिकल में भारत में मिट्टी के प्रकार के बारे में जानेंगे। जैसे कि मिटटी क्या है, मिटटी कितने प्रकार के होते हैं और मिटटी से जुडी विस्तृत जानकारी जानेंगे । हम सभी मिट्टी से जुड़े हुए हैं बिना मिट्टी के जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं | मिट्टी के अध्ययन के विज्ञान को मृदा विज्ञान यानी पेडोलोजी कहा जाता है. भारत में मिट्टी के प्रकार से जुड़े प्रश्न भी अक्सर प्रतियोगी परीक्षाओं में भी पूछे जाते हैं। भारत में मिट्टी के प्रकार से जुडी विस्तृत जानकारी के लिए इस पोस्ट को पूरा जरुर पढ़ें।
Table of content :-
- मिटटी की परिभाषा
- जलोढ़ मिट्टी
- काली मिट्टी-
- लाल मिट्टी-
- लैटेराइट मिट्टी
- जंगली व पर्वतीय मिट्टी-
- शुष्क और मरुस्थलीय-
- लवणीय व क्षारीय मिट्टी-
- गीली और दलदली मिट्टी -
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मिटटी की परिभाषा :-
पृथ्वी के ऊपरी सतह पर मोटे, मध्यम और बारीक कार्बनिक तथा अकार्बनिक मिश्रित कणों को 'मिट्टी' या मृदा कहते हैं। यह अनेक के खनिजों , पौंधों और जिव जंतुओं के अवशेष से बनती है।
भारत में पाए जाने वाले मिट्टी के प्रकार ( type of Indian soil in Hindi)-भारत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् ने भारत की मिट्टियों का विभाजन 8 प्रकारों में किया है
- जलोढ़
- काली
- लालः
- लैटेराइटः
- जंगली व पर्वतीय मिट्टी
- शुष्क और मरुस्थलीय
- लवणीय व क्षारीय
- गीली और दलदली
1. जलोढ़ मिट्टी-
यह मिट्टी देश के 40% भागों में लगभग 15 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र में विस्तृत है। भूगर्भशास्त्रीय दृष्टिकोण से इसे बांगर व खादर में विभक्त किया जाता है. प्राचीन जलोढ़क को बांगर कहते हैं, जिसमें कंकड़ व कैल्शियम कार्बोनेट भी होता है। नवीन जलोढ़क जिसे खादर भी कहा जाता है, हर साल बाढ़ द्वारा लाई गई मिट्टियाँ होती हैं। बांगर की अपेक्षा यह अधिक उपजाऊ होती है। जलोढ़ मिट्टियाँ पोटाश, फास्फोरिक अम्ल, चूना व कार्बनिक तत्वों में धनी होती है परंतु इसमें नाइट्रोजन व ह्यूमस की कमी पाई जाती है।
2. काली मिट्टी-
इसे रेगुर मिट्टी या कपासी मिट्टी भी कहा जता है यह अत्यधिक उपयोगी हैं । यह कपास की खेती हेतु सबसे उपयुक्त मिट्टी है। इसका निर्माण ज्वालामुखी लावा के अपक्षयण व अपरदन में हुआ है। मैग्नेटाइट, लोहा, अल्युमिनियम सिलिकेट, ह्यूमस आदि की उपस्थिति के कारण इसका रंग काला हो जाता है। इस मिट्टी में नमी धारण करने की बेहतर क्षमता होती है। इसमें कपास, मोटे अनाज, तिलहन, सूर्यमुखी, अंडी, सब्जियाँ, खट्टे फल की कृषि होती है। काली मिट्टी हमेशा से खेती के लिए उपयोगी माना गया हैं |
3. लाल मिट्टी-
यह प्राचीन क्रिस्टलीय शैलों के अपक्षयण व अपरदन से निर्मित हुआ है। गहरे निम्न भू-भागों में यह दोमट प्रकार की है जबकि तथा उच्च भूमियों पर असंगठित कंकड़ों के समान मिलता है। क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से भारत में लाल मिट्टी का तीसरा स्थान है। भारत में 5.18 लाख वर्ग किमी0 पर लाल मिट्टी का विस्तार है। लाल मिट्टी का निर्माण ग्रेनाइट चट्टान के टूटने से हुई है। ग्रेनाइट चट्टान आग्नेय शैल का उदाहरण है। भारत में क्षेत्रफल की दृष्टिकोण से सबसे अधिक क्षेत्रफल पर तमिलनाडु राज्य में लाल मिट्टी विस्तृत है। लाल मिट्टी के नीचे अधिकांश खनिज मिलते हैं।
लाल मिट्टी में भी नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस की मात्रा कम होती है। लाल मिट्टी में मौजूद आयरनर ऑक्साइड(Fe2O3) के कारण इसका रंग लाल दिखाई पड़ता है। लाल मिट्टी फसल के उत्पादन के लिए अच्छी नहीं मानी जाती है। इसमें ज्यादा करके मोटे अनाज जैसे- ज्वार, बाजरा, मूँगफली, अरहर, मकई, इत्यादि होते है। कुछ हद तक धान की खेती इस मिट्टी में की जाती है, लेकिन काली मिट्टी के अपेक्षा धान का भी उत्पादन कम होता है। तमिलनाडु के बाद छतीसगढ़, झारखंड, मध्यप्रदेश एवं उड़ीसा प्राप्त में भी लाल मिट्टी मिलते है।
4. लैटेराइट मिट्टी
200 सेमी. या अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में चूना व सिलिका के निक्षालन से इसकी उत्पत्ति होती है। इस मिट्टी में लौह-ऑक्साइड व अल्युमिनियम ऑक्साइड की प्रचुरता होती है। भारत में क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से लैटेराइट मिट्टी को चौथा स्थान प्राप्त है। यह मिट्टी भारत में 1.26 लाख वर्ग किमी0 क्षेत्र पर फैला हुआ है। भारत में लैटेराइट मिट्टी असम, कर्नाटक एवं तमिलनाडु राज्य में अधिक मात्रा में पाये जाते है। यह मिट्टी पहाड़ी एवं पठारी क्षेत्र में पाये जाते है।
पढ़ें- कोशिका और कोशिकांग की सरंचना।
5. जंगली व पर्वतीय मिट्टी-
यह निर्माणाधीन मिट्टी है। ह्यूमस की अधिकता के कारण यह अम्लीय गुण रखती है। भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में इसमें ह्यूमस अधिक होता है। अतः ऐसे क्षेत्रों में चाय, कॉफी, मसाले तथा उष्णकटिबंधीय फलों की खेती संभव है। कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, मणिपुर, जम्मू-कश्मीर व हिमाचल प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में यह मिट्टी पायी जाती है। पर्वतीय मिट्टी में कंकड़ एवं पत्थर की मात्रा अधिक होती है। पर्वतीय मिट्टी में भी पोटाश, फास्फोरस एवं चूने की कमी होती है। पहाड़ी क्षेत्र में खास करके बागबानी कृषि होती है। पहाड़ी क्षेत्र में ही झूम खेती होती है। झूम खेती सबसे ज्यादा नागालैंड में की जाती है। पर्वतीय क्षेत्र में सबसे ज्यादा गरम मसाले की खेती की जाती है।
6. शुष्क और मरुस्थलीय-
शुष्क व अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में इसका विस्तार 1.42 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र है। इस मिट्टी में बालू की मात्रा अधिक होती है एवं यह बाजरा व ज्वार जैसे मोटे अनाजों की खेती के लिए उपयुक्त है। इन मिट्टियों में घुलनशील लवणों एवं फॉस्फोरस की मात्रा काफी अधिक होती है, जबकि कार्बनिक तत्वों एवं नाइट्रोजन की कमी होती है। शुष्क एवं मरूस्थलीय मिट्टी में घुलनशील लवण एवं फास्फोरस की मात्रा अधिक होती है
7. लवणीय व क्षारीय मिट्टी-
यह मिट्टी राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, तमिलनाडु के शुष्क व अर्द्ध-शुष्क प्रदेशों में विस्तृत है। सोडियम व मैग्नेशियम की अधिकता के कारण यहां मिट्टी लवणीय तथा कैल्शियम व पोटैशियम की अधिकता के कारण आरीय हो गई है। अतः ये खेती के लिए उपयुक्त नहीं है। इन मिट्टियों को चूना या जिप्सम मिलाकर सिंचित कर तथा चावल और गन्ना जैसे लवणरोधी फसलों को लगाकर सुधारा
8. गीली और दलदली मिट्टी -
जैविक मिट्टी को दलदली मिट्टी के नाम से जाना जाता है।इसका निर्माण अत्यधिक आर्द्रता वाली दशाओं में बड़ी मात्रा में कार्बनिक तत्वों के जमाव के कारण होता है। इसमें घुलनशील लवणों की पर्याप्तता होती है परंतु फास्फोरस व पोटाश की कमी रहती है। गीली मिट्टी प्रायः धान की खेती के उपयुक्त होती है।
आज के इस आर्टिकल में हमने जाना भारत में पाए जाने वाले मिट्टी के प्रकार ( type of Indian soil in Hindi) भारत की मिट्टियाँ PDF प्रायद्वीपीय भारत की मिट्टियाँ भारत की मिट्टी के प्रकार और मिट्टी की संरचना के प्रकार आदि |
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FAQs:-
- मृदा में सड़े गले पदार्थ को क्या कहा जाता है?
उत्तर: मृदा में सड़े गले जैव पदार्थ को ह्यूमस कहा जाता है।
- सबसे अच्छी मिटटी कौन सी है ?
उत्तर: सभी मिट्टियों में दोमट मिटटी को सबसे अच्छा माना जाता है क्यूंकि दोमट मिटटी फसलों की सबसे अच्छी उपज देता है।
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