भारत के राष्ट्रपति की शक्तियाँ | Powers of the President of India In Hindi

भारतीय राष्ट्रपति की शक्तियाँ। Powers of the President of India।

आज के इस पोस्ट में भारत के राष्ट्रपति की शक्तियों के बारे में जानेंगे। भारत  का राष्ट्रपति भारत का प्रथम नागरिक कहलाता है। अनुच्छेद 52 में कहा गया है कि भारत का एक राष्ट्रपति होगा। अनुच्छेद 53 में कहा गया है कि संघ की सभी कार्यपालिका संबंधी शक्ति राष्ट्रपति में निहित होंगी।भारत का नागरिक होने के कारण भी हमें अपने देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति और राष्ट्रपति की शक्तियों के बारे में जरुर जानना चाहिए। अतः राष्ट्रपति नाममात्र की कार्यपालिका है तथा प्रधानमंत्री और उसका मंत्रिमंडल वास्तविक कार्यपालिका है। राष्ट्रपति की शक्तियों से जुड़े प्रश्न विभिन्न  प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे- UPSC,SSC,RRB,NTPC,RAILWAY,STATE PCS,BANKING PO,BANKING CLERK,IBPSइत्यादि  में पूछा जाता है। भारत के राष्ट्रपति की शक्तियाँ जानने के लिए इस पोस्ट को पूरा जरुर पढ़ें।


    जाने इन शक्तियों के बारे में पूरी जानकारी -

    राष्ट्रपति की प्रशासनिक शक्तियाँ

    1. भारत सरकार की सभी कार्यपालिका शक्तियों का प्रयोग राष्ट्रपति के नाम से किया जाता है।

    2. राष्ट्रपति वास्तविक कार्यपालिका नहीं है, अपितु वह संवैधानिक प्रधान है।

    3. 42वें संविधान संशोधन अधिनिमय ने राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह मानने के लिए 'बाध्य' कर दिया है।

    4. 44वें संविधान संशोधन द्वारा राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह को केवल एक बार पुनर्विचार के लिए प्रेषित करने का अधिकार दिया गया है। यदि मंत्रिपरिषद अपने विचार पर टिकी रहती है, तो राष्ट्रपति उसकी सलाह को मानने के लिए बाध्य होगा।

    5. राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है और प्रधानमंत्री की सलाह से अन्य मंत्रियों की भी नियुक्ति करता है।

    6. राष्ट्रपति भारत के महान्यायवादी की नियुक्ति करता है तथा वह राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यंत उत्तरदायी होता है।

    7. इसके अलावा राष्ट्रपति नियंत्रक महालेखा परीक्षक, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, राज्यों के राज्यपाल, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, संघ लोक सेवा आयोग तथा राज्यों के संयुक्त लोक सेवा आयोग, वित्त आयोग, निर्वाचन आयोग के सदस्य तथा मुख्य निर्वाचन आयुक्त, विभिन्न अन्य आयोगों-राजभाषा आयोग, अल्पसंख्यक तथा पिछड़ा वर्ग आयोग और अनुसूचित क्षेत्रों के लिए आयोग, आदि के सदस्यों एवं अध्यक्षों की नियुक्ति करता है।

    8. राष्ट्रपति संघीय प्रशासन से संबंधित किसी भी प्रकार की सूचना प्रधानमंत्री से प्राप्त कर सकता है।

    9. इसके अलावा राष्ट्रपति प्रत्यक्ष रूप से संघीय राज्यों का प्रशासन उप-राज्यपाल अथवा आयुक्त के माध्यम से देखता है।

    राष्ट्रपति की विधायी शक्तियाँ

    1. राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग है (अनुच्छेद 79)।

    2. राष्ट्रपति संसद के सदनों को आहूत करने, सत्रावसान करने और लोक सभा का विघटन करने की शक्ति रखता है।

    3. राष्ट्रपति लोक सभा के प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात् प्रथम सत्र के प्रारंभ में तथा प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरंभ में एक साथ संसद के दोनों सदनों में प्रारम्भिक अभिभाषण करता है।

    4. राष्ट्रपति को संसद में विधायी विषयों के संबंध में संदेश भेजने का अधिकार है।

    5. लोक सभा अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष के पद खाली होने की स्थिति में राष्ट्रपति उस पद के लिए लोक समा के किसी भी सदस्य को नियुक्त कर सकता है और यही कार्य राज्य सभा में सभापति तथा उपसभापति की अनुपस्थिति में भी करता है।

    6. राष्ट्रपति को लोक सभा में एंग्लो-इंडियन समुदाय के दो व्यक्ति तथा राज्य सभा में 12 सदस्य मनोनीत करने का अधिकार है।

    7. संसद द्वारा वांछित कोई भी विधेयक तभी कानून बनता है, जब उस पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हो जाते हैं।

    8. राष्ट्रपति वार्षिक वित्तीय विवरण, नियंत्रक महालेखा परीक्षक का प्रतिवेदन, वित्त आयोग की सिफारिश तथा अन्य आयोग की रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत करवाता है।

    9. कुछ विषयों से संबंधित विधेयक संसद में प्रस्तुत करवाने से पूर्व राष्ट्रपति की अनुमति आवश्यक होती है। जैसे-राज्यों की सीमा परिवर्तन और धन विधेयक।

    10. राष्ट्रपति किसी भी विधेयक को अनुमति दे सकता है। उसे पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकता है तथा उस पर अपनी अनुमति रोक सकता है, लेकिन धन विधेयकों पर राष्ट्रपति को अनिवार्य रूप से अनुमति देनी होती है तथा उसे पुनर्विचार के लिए भी वापस नहीं भेज सकता है। संविधान संशोधन विधेयक के लिए भी इसी प्रकार का प्रावधान है।

    11. यदि राष्ट्रपति द्वारा संसद को पुनर्विचार के लिए वापस किया गया विधेयक पुनः विचार करने के पश्चात् राष्ट्रपति की अनुमति के लिए प्रस्तुत किया जाता है, तो इस पर वह अनिवार्य रूप से अनुमति देगा।

    12. संविधान में राष्ट्रपति को किसी विधेयक को अनुमति देने या अनुमति न देने के संबंध में कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गयी है।

    13. राष्ट्रपति को किसी विधेयक पर अनुमति देने या देने के निर्णय लेने की समय सीमा का अभाव होने के कारण राष्ट्रपति बोटो का प्रयोग कर सकता है।

    14. राष्ट्रपति जब संसद का सत्र न चल रहा हो तथा किसी विषय पर तुरंत विधान बनाने की आवश्यकता हो तो अध्यादेश द्वारा विधान बना सकता है।

    15. राष्ट्रपति द्वारा बनाए गए अध्यादेश संसद के विधान की ही तरह होते हैं, लेकिन अध्यादेश अस्थायी होते हैं। राष्ट्रपति अध्यादेश अपनी मंत्रिपरिषद की सलाह से जारी करता है।

    16. संसद का अधिवेशन होने पर अध्यादेश संसद के समक्ष रखा जाना चाहिए, यदि संसद उस अध्यादेश को अधिवेशन प्रारंभ होने की तिथि से छह सप्ताह के अंदर पारित नहीं कर देती तो वह स्वयं ही निष्प्रभावी हो जाएगा।

    17. 44वें संविधान संशोधन, 1978 द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि, राष्ट्रपति के अध्यादेश निकालने की परिस्थितियों को असद्भावनापूर्ण होने का संदेह होने पर न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।

    राष्ट्रपति की न्यायिक शक्तियाँ

    1. राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीशों को और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करता है।

    2. राष्ट्रपति किसी सार्वजनिक महत्व के विषय पर उच्चतम न्यायालय से अनुच्छेद-143 के अधीन परामर्श ले सकता है, लेकिन वह परामर्श मानने के लिए बाध्य नहीं है।

    3. राष्ट्रपति किसी सैनिक न्यायालय द्वारा दिए गए दंड को, कार्यपालिका के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत दिए गए दंड को तथा अपराधी को मृत्युदंड दिए जाने की स्थिति में क्षमादान दे सकता है।

    4. दंड को कम कर सकता है। दंड की प्रकृति को परिवर्तित कर सकता है। दंड को निलंबित कर सकता है।

    5. राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियाँ राष्ट्रपति तीनों सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति होता है, वह तीनों सेनाओं के सेनाध्यक्षों की नियुक्ति करता है।

    6. राष्ट्रपति को युद्ध या शांति की घोषणा करने तथा रक्षा बलों की अभिनियोजित करने का अधिकार है, लेकिन राष्ट्रपति के ये अधिकार संसद द्वारा नियंत्रित हैं।

    7. राष्ट्रपति तीन परिस्थितियों में आपात लागू कर सकता है : युद्ध बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से यदि भारत या उसके किसी भाग की सुरक्षा संकट में हो (अनुच्छेद 352)।

    8. किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र के विफल हो जाने, केंद्र की आज्ञा का अनुपालन न करने अथवा संविधान के अनुबंधों का पालन न करने की स्थिति में (अनुच्छेद 356) आपातकाल की घोषणा कर सकता विधानमण्डल की शक्तियां संसद को सौंप दी जाती हैं।

    9. भारत में वित्तीय संकट उत्पन्न होने पर राष्ट्रीय वित्तीय आपात की उद्घोषणा (अनुच्छेद 360) कर सकता हैजिसके अंतर्गत राज्यों के व्यय को नियंत्रित करके और लोक सेवकों के वेतन घटाकर तथा अन्य उपाय करके वित्तीय स्थायित्व प्रदान करने का प्रयास करता है।

      राष्ट्रपति की क्षमादान करने की शक्तियाँ

      • संविधान के अनुच्छेद 72 में राष्ट्रपति को उन व्यक्तियों को क्षमा करने की शक्ति प्रदान की गई है जो निम्नलिखित मामलों में किसी अपराध के लिए दोषी करार दिए गए हैं :

        1. संघीय विधि के विरुद्ध किसी अपराध में दिए गए दंड में;

        2. सैन्य न्यायालय द्वारा दिए गए दंड में

        3. यदि ठंड का स्वरूप मृत्युदंड होराष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति न्यायपालिका से स्वतंत्र है।

      • राष्ट्रपति की इस शक्ति के दो रूप हैं-

        1. विधि के प्रयोग में होने वाली न्यायिक गलती को सुधारने के लिए,

        2. यदि राष्ट्रपति दंड का स्वरूप अधिक कड़ा समझता है तो उसका बचाव प्रदान करने के लिए.

      • राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति में निम्नलिखित बातें सम्मिलित हैं :

        1. क्षमा : इसमें दंड और बंदीकरण दोनों को हटा दिया जाता है तथा दोषी की सभी दंड, दंडादेशों और निर्रहताओं से पूर्णतः मुक्त कर दिया जाता है।

        2. लघुकरण : इसका अर्थ है कि दंड के स्वरूप को बदलकर कम करना। उदाहरणार्थ मृत्युदंड का लघुकरण कर कठोर कारावास में परिवर्तित करना, जिसे साधारण कारावास में परिवर्तित किया जा सकता है।

        3. परिहार : इसका अर्थ हैदंड के प्रकृति में परिवर्तन किए बिना उसकी अवधि कम करना। उदाहरण के लिए दो वर्ष के कठोर कारावास को एक वर्ष के कठोर कारावास में परिहार करना।

        4. विराम : इसका अर्थ है कि किसी दोषी को मूलरूप में दी गई सजा को किसी विशेष परिस्थिति में कम करना, जैसे- शारीरिक अपंगता अथवा महिलाओं को गर्भावस्था की अवधि के कारण।

        5. प्रविलंबन : इसका अर्थ है- किसी दंड (विशेषकर मृत्युदंड) पर अस्थायी रोक लगाना। इसका उद्देश्य है। दोषी व्यक्ति का क्षमा याचना अथवा दंड के स्वरूप परिवर्तन की याचना के लिए समय देना।

      • संविधान के अनुच्छेद 161 के अंतर्गत राज्य का राज्यपाल भी क्षमादान की शक्तियाँ रखता है। अतः राज्यपाल भी किसी दंड को क्षमा कर सकता है, अस्थाई रूप से रोक सकता है, सजा को या सजा की अवधि को कम कर सकता है।

      • वह राज्य विधि के विरुद्ध अपराध में दोषी व्यक्ति की सजा को निलंबित कर सकता है दंड का स्वरूप बदल सकता है और दंड की अवधि कम कर सकता है, परंतु निम्नलिखित दो परिस्थितियों में राज्यपाल की क्षमादान शक्तियाँ, राष्ट्रपति से भिन्न हैं :

        1. राष्ट्रपति सैन्य न्यायालय द्वारा दी गई सजा को क्षमा कर सकता है, परंतु राज्यपाल नहीं।

        2. राष्ट्रपति मृत्युदंड को क्षमा कर सकता है परंतु राज्यपाल नहीं कर सकता। राज्य विधि द्वारा मृत्युदंड की सजा को क्षमा करने की शक्ति राष्ट्रपति में निहित है न कि राज्यपाल में। हालांकि राज्यपाल मृत्युदंड को निलंबित, दंड का स्वरूप परिवर्तित अथवा दंडावधि को कम कर सकता है। दूसरे शब्दों मेंमृत्युदंड के निलंबन, दंडावधि कम करने, दंड का स्वरूप बदलने के संबंध में राज्यपाल व राष्ट्रपति की शक्तियां समान हैं।
    आज के पोस्ट में भारत के राष्ट्रपति की विधिक, प्रशासनिक और क्षमादान की शक्तियों के बारे में जाना। भारत की राष्ट्रपति की शक्तियों से जुड़े सवाल अक्सर प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते हैं।  

    आशा करता हूँ की यह पोस्ट  आपके लिए फायदेमंद सिद्ध होगा और आपको परीक्षा की तैयारी  में भी सहायक होगा ,अगर आपको पोस्ट पसंद आये तो पोस्ट को शेयर जरुर करें।

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