उत्तर वैदिक काल और धार्मिक व्यवस्था (Later Vedic Period and Religious System)
आज के इस पोस्ट में उत्तर वैदिक काल और धार्मिक व्यवस्था के बारे में जानेंगे। उत्तर वैदिक काल प्राचीन भारत काल के अंतर्गत आता है। उत्तर वैदिक काल में पशुपालन मुख्य व्यवसाय था। उत्तर वैदिक काल और धार्मिक व्यवस्था से जुड़े सवाल अक्सर प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे-UPSC,STATE PCS,RRB,NTPC,SSC,BANKING PO ,BANKING CLERK इत्यादि में पूछे जाते हैं। उत्तर वैदिक काल में धर्म का प्रमुख आधार यज्ञ बन गया, जबकि इसके पूर्व ऋग्वैदिक काल में स्तुति और आराधना को महत्व दिया जाता था। उत्तर वैदिक काल में धार्मिक व्यवस्था के चलते मूर्ति पूजा के आरंभ होने के कुछ संकेत मिलते हैं।
- सामवेद(Samaveda)
- यजुर्वेद(Yajurveda)
- अथर्ववेद(Atharvaveda)
- ब्राह्मण ग्रंथ(brahmin texts)
- अरण्यक(Aranyaka)
- उपनिषद्(Upanishads)
- वेदांग(Vedang)
- यज्ञ आदि कर्मकांडों का महत्वउत्तर वैदिक काल में बढ़ गया। इसके साथ ही अनेकानेक मंत्र अनुष्ठान प्रचलित हुए।
- उपनिषदों में स्पष्ट रूप से यज्ञों तथा कर्मकाहों की निंदा की गयी ।
- उत्तर वैदिक काल में ऋग्वैदिक देवता इंद्र, अग्नि और वायु रूप महत्वहीन हो गये। इनका स्थान प्रजापति, विष्णु और रुद्र ने ले लिया।
- प्रजापति को सर्वोच्च देवता कहा गया जबकि परिक्षित को मृत्युलोक का देवता कहा गया।
- उत्तर वैदिक काल में हो वासुदेव संप्रदाय एवं षड्दर्शनों (सांख्य योग, न्याय, वैशेषिक, पूर्व मीमांसा व उत्तर मीमांसा) का अविर्भाव हुआ।
- उत्तर वैदिक काल के अंतिम दौर में कर्मकांड एवं अनुष्ठानों के विरोध में वैचारिक आंदोलन शुरू भूत यज्ञ की बलि हुआ।
- इस आंदोलन की शुरुआत उपनिषदों ने की। उपनिषदों में पुनर्जन्म, मोक्ष और कर्म के सिद्धांतों की स्पष्ट रूप से व्याख्या की गई है।
- उपनिषदों में ब्रह्म और आत्मा के संबंधों की व्याख्या की गई।
- छांदोग्य उपनिषद् में बताया गया है कि जो मनुष्य इस जीवन में ब्रह्म ज्ञान प्राप्त कर लेता है, वह मृत्यु के पश्चात ब्रह्म तत्व में विलीन हो जाता है और जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है।
- निष्काम कर्म का सिद्धांत सर्वप्रथम ईषो उपनिषद् में दिया गया।
- कठोपनिषद् में यम-नचिकेता संवाद है। वृहदराज्यक उपनिषद में गार्गी याज्ञवलक्य संवाद है।
उत्तर वैदिक साहित्य कौन से हैं?
उत्तर वैदिक साहित्य कौन कौन से हैं? यह जानने से पहले हम जान लेते हैं की, उत्तर वैदिक क्या हैं? सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) के पश्चात भारत में जिस नवीन सभ्यता का विकास हुआ उसे ही आर्य(Aryan) अथवा वैदिक सभ्यता(Vedic Civilization) के नाम से जाना जाता है। और इस उत्तर वैदिक के साहित्य निम्न हैं:-
1. सामवेद(Samaveda):-
सामवेद(Samaveda) को भारतीय संगीत का प्राचीनतम एवं प्रथम ग्रंथ माना जाता है। सामवेद(Samaveda) का पाठ उद्गातृ या उद्गाता नामक पुरोहित करते थे।सामवेद(Samaveda) में मंत्रों की संख्या 1869 है, लेकिन 75 मंत्र ही मौलिक हैं। शेष मंत्र ऋग्वेद से लिए गए हैं। सामवेद की तीन शाखाएं है कौथुम, रामायनीय और बैमिनोय।
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2. यजुर्वेद(Yajurveda):-
यह कर्मका से संबंधित है। इसमें अनुष्ठान परक और स्तुतिपरक दोनों तरह के मंत्र हैं। यह गद्य और पद्म दोनों में रचित है। इसके दो भाग है-शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद यजुर्वेद में मंत्रों की संख्या 2086 है। यजुर्वेद(Yajurveda) के मंत्रों का उच्चारण करने वाला पुरोहित अध्वर्यु कहलाता है। की चार शाखाएँ है मैत्रायणी सौहता काटक कृष्ण यजुर्वेद शुक्ल यजुर्वेद की दो शाखाएँ है मादिन तथा कण्य संहिता राजसूर्य तथा वाजपेय जैसे दो राजकीय समारोहों का उल्लेख है।
3. अथर्ववेद(Atharvaveda):-
अथर्ववेद(Atharvaveda) की रचना सबसे अंत में हुई। अथर्ववेद में मंत्रों की संख्या 600020 अध्याय तथा 731 सूक्त है। अथर्ववेद में ब्राह्मज्ञान, धर्म, समाजनिष्ठा, औषधि प्रयोग, रोग निवारण मंत्र, जादू-टोना आदि अनेक विषयों का वर्णन है। अथर्ववेद(Atharvaveda) की दो शाखाएं है पिप्पलाद और शौनक इसमें गायों को कहा गया था।
4. ब्राह्मण ग्रंथ(brahmin texts):-
ब्राह्मण ग्रंथों की रचना वेदों को सरल व्याख्या की गई है। इन्हें दों की टीका भी कहा जाता है। इनमें यज्ञों का आनुष्ठानिक महत्व दर्शाया गया है। ब्राह्मण ग्रंथ(brahmin texts) ग्रंथों की रचना गद्य में की गई है।
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5. अरण्यक(Aranyaka):-
अरण्यक(Aranyaka) ग्रंथों की रचना जंगलों में निवास करने वाले विद्वानों द्वारा की गई है। इससे अरण्यक(Aranyaka) धार्मिक अनुष्ठान एवं दार्शनिक प्रश्नों की चर्चा है। आरण्यकों में आत्मा, परमात्मा संसार और मनुष्य संबंधी ऋषियों के दार्शनिक विचार निबद्ध हैं।वर्तमान में कुल उपलब्ध सात अरण्यक है-ऐतरेय शाखायन तैत्तरीय, मैत्रायणी मान्दिन, वृहदारण्यक तत्वकार उदय हुआ.
6. उपनिषद्(Upanishads):-
उपनिषद्(Upanishads) अरण्यकों के पूरक ग्रंथ है। वैदिक साहित्य के अंत में इनकी रचना हुई, इसलिए इन्हें वेदात भी कहा जाता है।उपनिषद् का अर्थ है वह विद्या जो मुक्त के समीप बैठकर सांखो जाती है। उपनिषदों की कुल संख्या 108 मानी गई है, किंतु प्रामाणिक उपनिषद 12 ही है।
भारत का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य 'सत्यमेव जयते' मुण्डकोपनिषद् से लिया गया है। उपनिषदों में आत्मा परमात्मा मोक्ष एवं पुनर्जन्म की अवधारणा पर विचार किया गया है।
7. वेदांग(Vedang):-
वेदांगो की संख्या 6 है-
जानें- मगध साम्राज्य के राजवंश।
01. शिक्षा - इसमें वेद मन्त्रों के उच्चारण करने की विधि बताई गई है। स्वर एवं वर्ण आदि के उच्चारण-प्रकार की जहाँ शिक्षा दी जाती हो, उसे शिक्षा कहाजाता है। शिक्षा का उद्भव और विकास वैदिक मन्त्रों के शुद्ध उच्चारण और उनके द्वारा उनकी रक्षा के उदेश्य से हुआ है।
02.कल्प - वेदों के किस मन्त्र का प्रयोग किस कर्म में करना चाहिये, इसका कथन किया गया है। इसकी तीन शाखायें हैं- श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र और धर्मसूत्र। कल्प वेद-प्रतिपादित कर्मों का भलीभाँति विचार प्रस्तुत करने वाला शास्त्र है। इसमें यज्ञ सम्बन्धी नियम दिये गये हैं।
03.व्याकरण - इससे प्रकृति और प्रत्यय आदि के योग से शब्दों की सिद्धि और उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित स्वरों की स्थिति का बोध होता है। वेद-शास्त्रों का प्रयोजन जानने तथा शब्दों का यथार्थ ज्ञान हो सके अतः इसका अध्ययन आवश्यक होता है।
04.निरुक्त - वेदों में जिन शब्दों का प्रयोग जिन-जिन अर्थों में किया गया है, उनके उन-उन अर्थों का निश्चयात्मक रूप से उल्लेख निरूक्त में किया गया है। इसे वेद पुरुष का कान कहा गया है। निःशेषरूप से जो कथित हो, वह निरुक्त है। इसे वेद की आत्मा भी कहा गया है।
05.ज्योति - इससे वैदिक यज्ञों और अनुष्ठानों का समय ज्ञात होता है। यहाँ ज्योतिष से मतलब `वेदांग ज्योतिष´ से है। यह वेद पूरुष का नेत्र माना जाता है।
06.छन्द - वेदों में प्रयुक्त गायत्री, उष्णिक आदि छन्दों की रचना का ज्ञान छन्दशास्त्र से होता है। इसे वेद पुरुष का पैर कहा गया है। ये छन्द वेदों के आवरण है। छन्द नियताक्षर वाले होते हैं। इसका उदेश्य वैदिक मन्त्रों के समुचित पाठ की सुरक्षा भी है।
आज के पोस्ट में उत्तर वैदिक काल के अंतर्गत उत्तर वैदिक काल में धार्मिक व्यवस्था से जुडी जानकारी के बारे में जाना ,जो हमारे अपनी संस्कृति को जानने के बहुत ही जरुरी है। साथ ही उत्तर वैदिक काल और धार्मिक व्यवस्था से जुड़े प्रश्न भी विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते हैं ।
आशा करता हूँ कि यह पोस्ट आपके लिये उपयोगी साबित होगी ,अगर आपको पोस्ट अच्छी लगे तो पोस्ट को शेयर जरुर करें।
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